
अराध्य किसान
लेखक: पूरन चन्द्र काण्डपाल
कैक पास कतुक्वे धन सुन चादि क्यले नि हो
अगर नि हो ग्यू-धानाक गुद उ कसी ज्यून रो
का बै ऊनी यू अनाजा गुद कभै सोचो
अगर नि हुन इनुकै उगुणी, हमर अस्तिव मिटि जो।
रातिब्याण अन्यारटै किसान क पुर कुटुम्ब उठि जां
हौव कान धरि बल्दों दगाड़ उ खेत म पुजि जां
खेत हय वीक मंदिर परिश्रम वीक पुज प्रार्थना
यो घाम पौन जाड़ अन्यार उज्याव उ कभै देखन ना।
भुक तीस खाण-पिण पैरणैकि नि हड होश
द्वि रवाट एक लोटी पाणी पीते ही ऐ जनेर हय जोश
हौवै सी में वीक पसिण और बी दगडै पड़नेर हाय
वीक खशि क ठिकाण नि हय जब बी अउंरि माथ उनेर हाय।
किसाना उपजाई गदाल ज्यान रनेर हय संसार
वीकै वजैल ज्यून हाय किड़ पिटुङ जीव बेसुमार
उई दिनेर हय फल फूल घा लुकुड़ पशुधन
हरी भरी बगिच, जङवा ड्राव बोट जड़ बुटि रनमन।
धरति बिछौंण अगास वोड़ण यस हयै तू अन्नदाता
सबूं कि भुक मिटूनेर हयै धन छ त्येरि मानवता
न कभै ऐराम न कभै छट्टि न कर्भ करि हड़ताल
औरू लिजी मिटि जिन्दगी यस तु धरतिक लाल।
आपणि जिन्दगी मिटै बेर तू दिछ जिन्दगी औरू कैं
सही पाने में अराध्य त नि में त्येरि पूज हुण चैं
धन छ त्यर पंच तत्व कैं जैल त्याग परिश्रम कि ठानि
अगर नि बुनै नाज'क बीं तू, कभौं य दूनि टिकि पानि।
पूरन चन्द्र काण्डपाल,

पूरन चन्द्र काण्डपाल
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