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जोग्याण भाग-०२

कुमाऊँनी भाषा की कविता-य बात छु पुरणी हो, जोगी और जोग्याणी हो। Kumauni Kavita Kumauni language poem Jogyaan or Jogan

जोग्याण भाग-०२

रचनाकार: सुरेंद्र रावत

य बात छु पुरणी हो, जोगी और जोग्याणी हो।
जोगी संग घुमि घुमि बै, खाणीयां कमाणी हो।

घुमनै घुमनै एगी हो, हमर गौं उज्याणी हो।
शिवजी क मन्दिर छु, तिथाण सिराणी हो।।

मन्दिर क काख पारी, एक कुटी डाली है।
सौकार ज्यु क दान देयी, गोर एक पाली है।।

भौल चली रौ कार बार, जोगी और जोग्याण हो।
झोली चिमटा लिबै रोज, मांगि बटी ल्याण हो।।

यतो छी जोग्याण भागी, जो छी भौतै बान हो।
जोग्याण की ज्वानी देखी, जोगी परेशान हो।।

अलक निरंजन कनैं जोगी, गौंनूं गौंनूं जांछ हो।
राती बटीक भिक्ष्या लिनैं, ब्याल तक आंछ हो।।

Part 2 जोग्याण
ॐसूरदा पहाड़ी, 21-10-2019
सुरेंद्र रावत, "सुरदा पहाड़ी"

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