
कुमाऊँनी भाषा के कवि शेर सिंह बिष्ट, शेरदा ‘अनपढ़’
शेरदा की रचनाओं कि सबसे बड़ी विशेषता उसका पहाड़ी जनजीवन से जुड़ाव रहा है जिसमें वह सामजिक समस्याओं और विषताओं को भी हास्य-व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं। शेरदा की आधुनिक बहुओं के बारे में ऐसी ही एक लोकप्रिय कुमाउँनी हास्य रचना है, "आजकलैकि ब्वारि बार में"। इसमें एक ही गाँव की बहु अपने ससुराल में अपने ससुराल वालों से संवाद कर रही है कि किस प्रकार उसका लाइफ स्टाईल अपने ससुराल वालों से मेल नहीं खाता है। वह उनके लाइफ स्टाईल के हिसाब से नहीं रह सकती और बेहत होगा कि वे लोग उसके लाइफ स्टाईल के हिसाब से अपने आप को ढाल लैं। कुमाउँनी भाषा की इस उत्तम रचना में बहू के अपने ससुराल वालों से वार्तालाप को शेरदा ने बड़े सजीव और रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है:-
आजकलैकि ब्वारि आपुंण सौर और सासुक बार में:-
सौर ज्यू म्यरा भान मांजला, और चुल लिपेलि सासू,
कच कच नि कर रनकरा, बखत ऐरी यस।
आंग रेशमी साड़ि बिलौजा, खुट चप्पला काल,
कसकै हालुं आग वे सासू, त्यार गुबराक डाल।
कसिकै काटूं घा लाकड़ौ, धुर जंगला मांज,
कसिकै कमूं तेरि जमीन, कसिकै पालूं बांज,
कसिकै जां मैं हांग भीड़ा में, कसिकै गोडुं खेत,
कसिकै फुकूं चुल ओ सासू, कसिकै चीरुं पेट।
यतुकै मैं वीक मैंस ऐ पड़ वील आपुणि सैणि थें कौ तू म्यर ईज बौज्यूं हैं यसिक किलै बुलाण छि, त्विकैं शरम नी औनि तब ब्वारि आपुण मैंस हैं:-
म्यर नि लागा हाल तुकैंड़िं, म्यार नी पड़ै फंद,
त्यार जसा बीसूं मैंस रनकरा, म्यार बटु में बंद।
वाल पलां कि हौस ली छैं तू, और मेरि फेरों छै मुई,
जस कसि मी झन समझिये, फनफनै द्यूंल चुई।
अब वीक आदिम कैं गुस्स ऐ गे और ऊ वीकैं मारण हुं दौड़ तब ब्वारि आपुण मैंस हैं:-
खबरदार हाथ लगालै, धुर नी धरुं हाड़,
और हुं बाबू कि चेलि रनकरा, त्यार नचुल भुताड़।
कै देखुं छै लाल आँखा कैं, कै देखुं छै जांठ
फोड़ि मांग लै ख्वर रनकरा, तोड़ि मांग लै भांट
अब वीक सास कैं, म्यर च्यल तो भल छू तू खराब छै, तब ब्वारि आपुण सास हैं:-
धन वे सासू तेरि खापेड़ि, कसिकै कींछै भल,
म्यर मैतौ कौ सुत खै गो छौ, त्यर जुवारि च्यौल।
खां वे अत्तर पी शराब, च्यौल ओ सासू त्यौर,
नानछिना का त्यौर बिगाड़ि, ख्वार जै पड़ौ म्यौर।
(पिछला भाग-११) ............................................................................................................(कृमश: भाग-१३)
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