
-:हमारे म्हैण,ऋतु,त्यार- ब्यार, खान-पान:-
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
गतांक (भाग-एक) बटि अघिल भाग दो:-
आषाढ, जकं हम असाढ कुनु, लगभग पंद्रह जुलाई तक समझौ, यो म्हैण देवशयनी एकादशीक भौत्तै महत्व भौय योयी म्हैणै अषाढ़ी पुन्यु जकं गुरु पौर्णमासी लै कुनन मनयी जैं। यो बात सबन कं फत्तै है कि एकादशी दिन फरार वाल बर्त हुं और सबै पुन्यू दिन कसार अवश्य बणयी जां विशेष कर अगर हम पुन्यूक पुज करनूं, पंचामृत तुलेसिक पात मंजैर हाली विष्णु भगवान कं चढ़ूणौक रीत भै।
श्रावण-भाद्रपद (जुलाई, अगस्त, सितम्बर) - वर्षा ऋतु:-
हमारे कुमाऊनी में श्रावण कं शौण कुनी यो म्हैणौक पर्व जन्यो पुंन्यु है जमें पुराण जन्यो बंदर बेर नय झक्क पिल जन्यो धारण करनी रक्षा सूत्र हाथन में बांधनी,यो दिन ऋषितर्पण हुं और सब मिलबेर एक दगाड़ बैठ बेर यो पुज करि जै। हमार पहाड़ में रक्षा सूत्र सबन कं बांदि जां आब सब नय नय कलाकारी वाल रक्षि बांधनी और अरमान भैराक देखा-देखी केवल भैणी आपण भैंन कं रक्षि बांधनी परंतु हमारे यहां संबंध कं रक्षा सूत्र बादणैक परंपरा छु।आब भौत लोग जन्यो लै नि पैरन और यो त्यारौक रूप पुरि तरिकैल बदयी गो।
यो दिन दाल भात रैत पुरि खट्टै चावलैक खीर पकूणौक रिवाज छु। हमारे सबै त्यौहारन में पुजारा लिजिए पिसुआक मिठ ग्यार मोदक बताश पुष्प फल द्याप्तन में चढ़ूणैक रीत छु। अधिकतर कुंदैक (खोआ) मिठै चढ़ूनी।
क्वे लै पुज हौ उमें दि (दिया) जगूण धूप नैवेद्यौक प्रावधान छु।
भाद्रपद जकं हम 'भदो'लै कुनू कृष्ण पक्षैक अष्टमी दिन कृष्ण जन्माष्टमि मनती जैं यमें हम षष्टी चौक बंणूनू उमें जौं रोपनू, कृष्ण लीला वाल पट्ट सजूनू और फलारी बर्त तो भयै। हमार कुमाऊं में उ दिन कृष्ण भगवान कं मैहैंदी लै चढै और उ महैंदी पुर परिवार लगूं चाहे उ पुरुष किलै नि हो। पहाड़न में पैल्ली महैंदीक स्थान पर मजेठिक पात पिस बेर लगूंछी।
कृष्ण जन्माष्टमिक मुख्य परसादशुंट (सौठ), जवाणणैक पजिर हुनेर भै। कृष्ण जन्माष्टमी क ग्यारां (११) दिनहरतालिका मनई हमारे यां तिवारी, त्रिपाठी जो लोग लेखनी उनैरि जन्यो हरताइक दिन बदयी जैं।कुछ लोग हरताइक बर्त लै करनी और गौरा महेश पुजनी।
यो भदौक शुक्ल पक्ष में पंचमी दिन बिरुड़ भिझूनी बिरुड़न में पांच अनाज जमें ग्युं चाण मुख्यत सुनी बिजैयी जानी हर दिन रत्तै उनौर पाणि बदयी जां बिरुड़न में हल्दौक गांठ और पांच नाजैक एक पोटलि लै धरनीं वी पोटलिक नाजैल सातूं आठूं दिन गमरा महेश (गौरा महेश) बोटैल बणयी जानी और सब शैणी सातुं (सप्तमी) आठूं (अष्टमी) दिन पुज करनी और सात गांठ वाल डोर दुबज्यौड़ पुज बेर आठूं दिन उकं धारण करनी और "बिण भाटज्यूक काथ"शुणनी जमें दुबज्यौड़ाक कारण बिण भाटज्यूक नानि ब्वारिक भौं बचौ जब उ नौल में झुक बेर पाणि पिण लागी तो वीक भौल वीक दुबज्यौड़ पकड़ ल्हे और ऐस कर बेर उनार राड़ू भौकि ज्यान बच गे तबै सबै विवाहित शैणी यो बर्त कर बेर डोर बौं हाथाक फांगुण में और दुबज्यौड़ गावन पैरनी।
मौलिक
अरुण प्रभा पंत, 18-08-2020
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