'

आपणी भाषा आपणी पछांण-ओ ईजा

कुमाऊँनी कहानी - आपणी भाषा आपणी पछांण - ओ ईजा, Kumaoni short story about the mother tongue is out identity

आपणी भाषा आपणी पछांण - ओ ईजा

छोटी सी कुमाऊँनी कहानी।
(लेखक: ठाकुर सिंह)

एक बारेक बात छु। एक शहर में कुछ पहाड़ी बच्चे पैली बखत नोकरी करण तै भ्यार निकली भाय, प्रदेश में।  पहाडक नानतीन उसीक कदुकै ले पढ़ी लिखी या घरक तेज तर्रार लै छु तै प्रदेश में के ले चतुराई नै करी सकन।  खैर जस लै भय सीद साद रुनैर भाय। पैल बखत नानतीन कवै काकै दगाड जनैर भाय कवै भाजी बेर ले जनैर भाय।  नोकरी करण तै कम्पनी या होटल में ज्यादेतर, इमानदारी पुर भय।

तो महराज एक घर में कुछ छ-सात नानतीनक डयार (डेरा) भय।  जामें द्धी नानतीन पहाड़ी भाय बाकी सब शहर वाल या दुसार जागाक, तेज तर्रार चालाक। 

तो महराज एक बार वीमें कुछ नानतीनीली काकै दुकान में नजदीके बजार में अड़ोस पड़ोस में कुछ चोरी करी दें।  तो वां वालन कें पत लागी गय। पहाडिन नानतीनन कें कै पत नै भय कि हरौ कस हरौ कैबेर‌।  जब बजार मे आय तो उनार पछिल वांक लोकल पढ़ी गाय।  जो देशी छी वी तो चालाक छी ऊनीली चोरी ले करी भय और देखतै ही सब रफु चक्कर है गाय।  पहाड़ी नानतीन कै पत नी लाग और पकड़ी हाल।  और वांक लोकल वाल चार पांच जणी मारन बैठ गाय लातैली हाथैली मारणाय। बजारक हैबेर हगील और भौतें मारणाय। पहाड़ी कै नै सुणानाय की भयो कै माराणाछा कैबैर।

तो महराज ब्याल बखतक टेंम भय।  वै फोजक केम्प लै भय हघिल पछिल।  तो चार पहाड़ी फौजी ब्याल कै घुमण जांणाय ऊनील देखीहाल।  पर बजारन में कवै काकै न चान।  कवै लै काकै गाभाई दिणी नै बणन चान।  प्रदेशन में सब अंन्दैखा करी दिनै।  जब तक पुलिस नै ऊन।  तो महराज! हमार पहाड़ में जो ठैट पहाड़ी बुला।  कै लै काम भय दुख तकलीफ ऊण जांण अचानक हर बात में ईजा शब्द जरूर ऊनैर भय।  आदिम बिमार लै हु जबत तो अंन्त में या कुनैर भय ‌ओ ईजा साय या हाय। अचानक कवै मिल जाएं तो ओ ईजा कांपै आछै।

कती ठाड धारन (उकाव) हिटछा तो धार मैं पुजीबेर लै कौला।  पटा बिसुण बखत‌ ओ ईजा पटा! ईजा।  कवै लै बुण बाड़ी आशीर्वाद लै दिनै ईजा बची रयै।  तो यसीकै दुख तकलीफ में लें ठैट पहाड़ी अंन्त में ईजा ही आफी अपने आप मुख पै निकल जानैर भय।  तो महराज ऊ पहाड़ी नानतीनक मुख यकै आवाज ऊणै ओ ईजा हाय‌ ओ ईजा ओ ईजा।  तो ईजा शब्द सुणीबेर उ फोजियनील कैय अरै य तो पहाड़ी छु।  तो फिर सबनीली उनन छै पुंछ कै माराणाछ याकै को छु या।

तो ऊनील सब बताय यस भ्यौ यस भ्यौ।  तो फिर वी पहाड़ी सिपानील ऊनन छै कय छोड़ो हमारे को दो हम पुलिस को देतै है तो उन्होनै छोड़ दिया। फोजी होने के नाते।

फिर आगे जाकर ऊ पहाड़ी पुछताछ करीबेर ऊनील वी कै उनार डयार (डेरा) तक पुजा बेर आय और वीक जान बची गय।

टुटी फुटी जस लै लैखी रौ नग जन मानिया कती गल्ती हुण पौर।
एक कोशीश छु।
काथ पुरीण कैलाश।
तो महराज आपणी भाषा आपणी पछांण।

जय देवभूमि।
ठाकुर सिंह,31-08-2020।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ