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बिंणाई - कुमाऊँ का लुप्तप्राय लोकवाद्य

बिंणाई मोरछंग, मोरचंग, मुरसिंग, मोरसींग आदि नामों से जाना जाने वाला लोकवाद्य है, Binai, Jew's Harp or Jaw harp is now extinct instrument in Kumaon region

बिंणाई - कुमाऊँ का लुप्तप्राय लोकवाद्य

यह लोहे की धातु से निर्मित एक छोटा-सा वाद्ययंत्र होता है जो पहाड़ों पर महिलाओं द्वारा बजाया जाने वाला एक लोकप्रिय वाद्य यन्त्र था।  मोर के सिर की आकृति से सजी हुई बनावट के कारण इसे मोरछंग और राजस्थान में मोरचंग के नाम से जानते हैं।  इसे कहीं मोछांग और अंग्रेजी में ज्यूस हार्प (Jew's Harp) और जॉव हार्प (Jaw Harp)आदि नामों से भी जाना जाता है।  वैसे वर्तमान में कुमाऊँ में बिणाई वाद्य यंत्र विलुप्त (Extinct) होने की कगार पर है।  पूर्व में इस वाद्ययन्त्र को कुमाऊँ के स्थानीय लोहार बनाया करते थे।

अब से दो-तीन दशक पूर्व तक कुमाऊँ के हर तीसरे ग्वाले और घसियारी के पास मिलता था।  बिंणाई को दोनों सिरों को दांतों के बीच में दबाकर बजाया जाता है।  इस वाद्ययंत्र को बाएँ हाथ के अँगूठे और तर्जनी उंगली में पकड़ा जाता है।  पटलिका (लामेला) के एक हिस्से को दांतों के बीच मजबूती से दबाया जाता है और दाहिने हाथ की उंगली से मुक्त जीह्वा को आगे और पीछे खींचने पर धुनें निकलती हैं। वादक का मुँह अनुनादक के रूप में कार्य करता है।

बिंणाई के दोनों सिरों के बीच लोहे की एक पतली व लचीली पत्ती लगी होती है। जिसे अंगुली से हिलाने पर कम्पन पैदा होता है और इस कम्पन से वादक के श्वांस की वायु टकराने पर एक सुरीले स्वर की उत्पत्ति होती है। श्वांस लेने और छोड़ने पर इसकी टंकार में विविधता आती है और इससे सैकड़ों विभिन्न ध्वनियाँ निकलती हैं।  श्वांस के कम-बाकी दबाव से इसकी तान को और भी सुरीला बनाया जा सकता है।  यह एकांत में बजाया जाने वाला हीलिंग इंस्ट्रूमेंट है।   जिससे ऎसा विरही संगीत पैदा होता है जो घंटों तक वादक और श्रोता को मंत्रमुग्ध कर देता है।

बिंणाई मोरछंग, मोरचंग, मुरसिंग, मोरसींग आदि नामों से जाना जाने वाला लोकवाद्य है, Binai, Jew's Harp or Jaw harp is now extinct instrument in Kumaon region

बिंणाई या मोरछंग  सम्बंधित हीरा सिंह राणा जी एक गीत "जुग बजाने गया बिंणाई..., जुग बजाने गया...." लोगों में काफी लोकप्रिय है।  केवल हुड़के की थाप और सारंगी की धुन के साथ आइये सुनते हैं कुमाऊँनी लोकगायक हीरा राणा जी का यह लोकप्रिय गीत:

बिंणाई अपने विभिन्न रूपों और नामों से देश और विदेश में कम लोकप्रिय ही सही पर लोकवाद्य के रूप में अपनी पहचान बनाये हुए है। भारत में राजस्थान में इसे मोरचंग और दक्षिण भारत में मोरसींग के नाम से जाना जाता है।  विदेश में ओशिनिया और एशिया में विशेष रूप से यह आदिवासी जनजातियों का प्रमुख लोकवाद्य यन्त्र है।   एशिया में यह वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों का एक प्रमुख लोकवाद्य है।  आज पहाड़ों पर चाहे यह लुप्तप्राय हो गया है हो पर आज के साइबर युग में भी इसकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है।

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हमें आशा और विश्वास है कि विभिन्न श्रोतों से संकलित कुमाऊँ में लुप्तप्राय होते जा रहे बिंणाई से सम्बंधित  यह जानकारी आपको पसंद आएगी।


वीडियो मनु पंवार जी के यूट्यूब चैनल से

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