
-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-
कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)
->गतांक भाग-१२ बै अघिल->>
अंक ३२-
प्रयागराज में गर्म पड़न शुरू के भौ पद्मा पशिणाक तहाड़नैल परेशान है गे, हर बखत पाणि पिण और नाण में रुण लागि।
पद्मा - आग लागौ यो गरम, कैसी रुन हुनाल यां? यांक सबै मैस कुणयी कि आय और गर्म होल, बबो कैसी रुंल इतु गरम में?
रीता - इजा अति गरम छु यां, हम पहाड़ कब जूंल?
पद्मा - दस मई तक तो स्कूलै छु, वीकै बाद जे होल।
नरैण - तुम चिंता नि करौ मैं खस टट्टी लगै द्यूंल। दिन दस बाजि बै ब्याल छः बाजि जांलै सब भितेर रुनि। मैंल तो साइकिल चलै बेर इतु गरम में भ्यार जाणै भौय पर औफिस में हमार खूब भल छु पंख और खस टट्टी लागि छन पर जब बिजुलि न्हैं जैं तब परेशानी हुनेरै भै, पुर तीन म्हैण अत्ति गर्म हुं।
पद्मा - आय तौ एक म्हैण लै नि हैरौय।
नरैण - अब रूण तौ भयै, धीरे धीरे तुमने कं लै आदत है जालि, बासि खाण झन खैया और खाण लै कमै खैया पाणि हुं लै पेटन जाग चै। आज में माटैकि सुराय और घाड़ लिऊंल उमें पाणि ठंड और स्वाद हुं। निम्मु निचोड़ी पांणि, आमौक पना पिबेर शांति मिलें।
रीता - बाबू तौ पना के भौय?
नरैण - भोल हुं मैं काच आम लिऊंल उनन कं घौल (चुलपन छार में भुनण) हाल बेर ध्वे धै बेर उनौर गुदौड़ मेशिबेर लूण चिन सौंफ जिर पोदिन मिलै बेर शर्बत जौ बणूनी उ फैद करु कुनी। यां बेलौक शर्बत लै मिलुं, घर में लै बणूनी। मैं कैथै पुछ बेर तुमन कं बतूंल।
सुनीता - बाबू चांट और रसगुल्ल खाणु कब भ्यार जूंल?
नरैण - बिल्कुल नै, आब तीन चार म्हैण भ्यारौक क्वे खाण पिण नै।
सुनीता - तब हम आपण पहाड़ न्है जानु यां तो बड़ि मुश्किल छु, बाबू तुम घरपनै नौकरी कर ल्हिनाकन।
नरैण - तस जै हुनौ तौ यां उना केहुं, आपण घर क्यातैं छाड़ना।
रीता - बाबू हम सब यैं रै सकनूं पढ़ाय लै तो करण छु, यो सुनीता कं के अकल न्हां।
सुनीता - मकं गजब दिमाग छु, मैं ठुल है बेर आपण पहाड़ कं ऐस चमकै द्यूंल जस इज भानन कं और यो कम्र कं चमकै दैं। पहाड़ैक सब कमि दूर है जाल तो हम यां केहुं ऊंल नै?
सब सुनीताक बातनैल चाइचाइय्यै रै ग्याय। नरैणैल सुनीताकं जोरैल पकड़िबेर प्यार करौ और रीता कं पलाशौ तौ झटपट नीता लै आपण बाबू कं पकड़ बेर ठाड़ है गे। तबै पद्मा लै जब कम्र में ऐ तो -----
"अरे वाह बाब चेलिनौक बड़ पिरेम हैरौ।
नरैण - म्यार नानतिन मोहिलै इतु छन कि के बतूं।
सुनीता - बाबू मैं दिमागैकि सबन है तेज छुनै? सांच्चि कैया बाबू।
नरैण - होय सांच्चि, भगवान कसम।
नीता - बाबू गलत बात, इज कैं कसम नि खान।
नरैण - अच्छा।
क्रमशः अघिल भाग-१४ ->>
मौलिक
अरुण प्रभा पंत
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