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गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु (भाग-१७)

कुमाऊँनी नाटक, गौं बै शहर - यांकौ अगासै दुसौर छु, Kumaoni Play written by Arun Prabha Pant, Kumaoni language Play by Arun Prabha Pant, Play in Kumaoni

-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-

कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)

->गतांक भाग-१६ बै अघिल->>

अंक ३९-

आब रीता आपण पढ़ाय और स्कूल में इतु लौ लगै बेर लाग गे कि नरैण और पद्मा कं औरै संतोष हुनेर भौय और नरैण हर बखत पुछनै रुनेर भौय रीताल खा कि नि खाय दूध पै कि नि पि और पद्मा लै जब देखौ तब वीक खोर पलाशण और भौत स्नेह  भावैल उकं देखनै रुनेर भै।

एक दिन स्कूल बै ऐ बेर आपण इज त थैं रीताल कौ--'इजा औरै ख्वार पीड़ है रै, स्कूल में लै मकं के समझ निआय।
पद्माल वीक ख्वारन तेल हालौ।  पर फिर लै उकं शांति नि मिल तो नरैण उकं ब्याव औफिस बै ऐबेर डाक्टर कं दिखूण हुं लिगो तो डाक्टरैल कौ- आंखें कमजोर हैं अभी यह दवाई दे देता हूं, आंखें चैक करवा लें।  आंखौक डाक्टरैल रीताक आंखेंक दूरैक नजर कमजोर बतें।
रीताकआंखन में चश्म लगूण पड़ौ त पद्मा कूण लागि - "इतु कम उम्र में तौ टोपण (चश्मा) लाग गो।
सुनीता - बाबू मैलै चसम लगूंल, महूं लै लिआऔ चसम।

अंक ४०-

नरैण जब भितेर आ तो रीता कं खिड़की उज्याव में पढ़ते देखौ तो वील पछौ -
नरैण - के लैट न्हांती?
रीता - ना
नरैण - चेला आंख कमजोर है जाल।
रीता - आब चसम छु देखी जां।  यो मैल आज खत्म करण छु।
नरैण चुप है गो, सोचण लागौ रीता कं वीक मनकस शिक्षा दिलै सकूंलौ मैं!  कसप...
पद्मा - बेटा सुस्तै ल्हे, स्कूल बै ऐयीं बै जरा लै आराम निकर त्वील।
रीता - इजा बला नै, भोल टैस्ट छु म्योर।
पद्मा - रीता कं मकं कूण नि पड़न  नीता लै पढ़न हुं बैठ जैं पर तौ नानि हर बखत खेलणै में रैं पर पत्त नै कैसी पैल ऐजैं।
नरैण - हमार सब संतान हिर छन, देख लिए एक दिन हमौर नाम उज्याव कराल।  तब तक नीता आपण बाबू थैं कूण लागि - "बाबू मकं संगीत सिखण छु।" 
नरैण - "पैल्ली पढ़ाया कर लें बेटा आय तु भौत नानि भई।"
नीता - अघिल बरस बै मैं तो संगीताक स्कूल लै जूंल बाबू, मकं स्कूल में सिख बेर प्रयाग संगीत वाल परीक्षा पास करण छु।
नरैण - होय होय।
पद्मा - तुम हर बात में होय होय कै दिंछा, ततु डबल कां बै ल्याला?  मैं जाणु कैसी खर्च बचूण पड़ुं।
सुनीता - "बाबू मकं फुटबॉल चैं भलि वाल।"
नरैण - "कतु डबलैक आलि ?"
सुनीता - पचासेक रुपैं बस।
पद्मा - "ऐसी कुणै जैसी डबलनाक बोट छन,पचासेक!"  मैंल कै हालौ 'नै'कूण लै सिखौ तुम।
नरैण - पुर स्कूल में पैल आली तो जे कौली ते ल्यूंल चेला, जा हाथखुट ध्वे बेर पढ़न हुं बैठ।
भीतेर पद्मा थै कूण लागौ नरैण, कि कैं क्वे पार्ट टाइम काम मिल जानौ तो नानतिननैक हर इच्छी पुर कर दिन्यू।  इतु सुजात नानतिन छन।
पद्मा - तुम फिकर नि करो, मैंल तुमन थैं पुछि बिना सिलाई काम शुरू कर राखौ, सुमित्राक भतिज कूंणै छी कि "चाची जी आप सिलाई का स्कूल खोल दीजिए।"
नरैण - मैंल कौछी नै क्वे इलम ख्याड़ नि जान।

क्रमशः अघिल भाग-१८ ->> 

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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