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गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु (भाग-१६)

कुमाऊँनी नाटक, गौं बै शहर - यांकौ अगासै दुसौर छु, Kumaoni Play written by Arun Prabha Pant, Kumaoni language Play by Arun Prabha Pant, Play in Kumaoni

-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-

कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)

->गतांक भाग-१५ बै अघिल->>

अंक ३७-

आब रीता आठ पास हैगे, नीता छः में और सुनीता चार पास है ग्याय।  रीता कक्षा नौ बै आपण नय साइकिल में जांण लागि, नीता और सुनीता बस में जानेर भ्या।   आब पुर परिवार प्रयागराजौक ठंड, गरम चौमास , हाट बाजार , पैठ, मंदिर पौ परबी समझ ग्याय और, कर्नल गंज, नीर गंज और कीट गंज में पद्मा यकलै न्यूत पौत में जाणि वालि एक समझदार शैणि है  गे, नरैण लै आब निश्चिंत है गोय कि चलौ आब यों लोग यांक लोकव्यवहार और मौसमांक अभ्यस्त है गेयीं।

नरैण - तुकं आब पहाड़ में आपण मैत, सौरासैक फाम न्हांती?
पद्मा - "काटि में लूण नि बुराओ", कैसी जानु, "कभै खेमु कड़कड़ कभै खेमुलि।"
नरैण - "हाय आब तु भौत समझदार और चालाक है गेछै, नानतिन्नाक इम्तिहान बाद न्है जै मैं वां लखनौ में चारबाग स्टेशन बै काठगोदाम तकौक इंतजाम कर द्यूंल म्यार लखनौक टूर पड़ते रुंनी।  वहां त्योर भाय तुमन कं बस में बैठै द्योल फिर लौटण बखत मैं ऐ जूंल तीन चार दिना लिजि।"
पद्मा - "जब लै जाणैक सोचनूं यां हमौर कारोबार गाव ऐं जां।  नानतिनैक पढ़ाय, तुमरि नौकरी, कभै इतु गरम कभै ठंड कैसी छाड़ु तुमन कं।  भ्यारौक खाला तो कै बिमार पड़ला को करौल यां परदेस में।"
नरैण - "ऐस कौ नै तुकं यो शहरैक सार एगे, आब तुमौर वां मन नि लागौल।"

अंक ३८-

यो उ समय छि जब कक्षा नौ बै आर्ट वर्ग  और विज्ञान वर्ग हैजांछी वीकौ फार्म रीता स्कूल बै लै रैछी।
रीता - बाबू यो फार्म भर दियौ।
नरैण - "पक्क बात नै विज्ञान ल्हिबेर पढ़ली।  भौत पढ़न पढ़ूं, रात-दिन एक करण पढ़ूं।"
रीता - "होय आय लै तौ मेहनत करनै छुं, बाबू मैं डाक्टर बणुंल पक्की बात।"
पद्मा - "साइंस पढ़ून में तो भौत डबल लागौल नै,आय तनौर ब्या में लै तो डबल चैल।  सोच ल्हिया, तीन तीन भाय, मकं तौ रात में पेटक्यूड़ लाग जानी।"
नरैण - "तुकं म्यार मलबै भरोस छु कि न्हां?"
पद्मा - "तुमनै कं ल्हिबेर तो ठाड़ छुं,पर बीच बीच में तुमन कं याद दिलूनै रुनु तुम नानतिन्नाक मोह में अत्ति कर दिछा, जताण ढकीणी भौय उतुकै खुट फरांग करण चै।"
नरैण - हमार यां घरवालि कं गृहस्थीक ,घरैकि मंत्री कुनी तबै तो।" 
पद्मा हंसते हुए कूण लागि -
"बुबोज्यू (ससुर जी) तो सासुक के लै कूण पर "तु चुप रौ, स्त्री बुद्धी प्रलयंकारी" कुंछी।"
नरैण - "होय बाबुल कभै इजैक नि शुणि, तबै मैं इज कं चुपचाप डबल टांक और म्याव मिस्टान दि ऊंछीं, तुकं लै नि बतूंछी।"
पद्मा - "उ सब म्याव मिस्टान उं कभै पुज करूंणी उप्रेतज्यू कं और बुबोज्यू कं हबीकाक दिन खीर पकै बेर दिनेर भइन, सायदै कभै खान्हाल।"
नरैण - "मैतो जब लै घर ऊंछ्यूं इज और बाबुक सेवा जे म्यार बुदि है सकि करनै छि पै, एक्कै रट छि उनैरि,  "म्यार नरैणाका एक च्योल है जान धैं।"
पद्मा - "भागुलि बुब तो तुमार लिजि दुसौर ब्याक तजवीज लै करणै छी और तुमैरि परुलि दिद लै कुनेर है, "इजाक सांच्चि कुणयुं हमार वां सबनाक दुसार ब्या करि बाद च्योल भौं।"
नरैण - "होय मथैं लै कौ एक बार तो मैल साफ कै दे कि आइंदा बै दुसौर ब्याक जिकौर लै करौ तो मैं घर ऊंण छाड़ द्यूंल फिर कभ्भै निकौय कैलै, तबै तो मैं चानू कि हमार चेलि  हिर जा चमकौ।"
पद्मा - "यो सब तो ठीक छु पर चेलिया भाय नै हर इच्छि पुर नि करि करौ,कैं बिगड़ ग्याय तो!"
नरैण - "चेलि हो या च्योल थ्वाड़ लगाम तो कसणै चै पर चेलि छन तो सकर और च्योल छु तो छूट, यैक मैं खिलाफ छुं।"

क्रमशः अघिल भाग-१७ ->> 

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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