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अमृत कलश - कुमाऊँनी श्रीमद्भगवतगीता (अग्यारूं अध्याय)

श्रीमद्भगवतगीता का कुमाऊँनी पद्यानुवाद, Poetic interpretation of ShrimadBhagvatGita in Kumaoni Language, Kumaoni Gita padyanuvad

अमृत कलश - कुमाऊँनी श्रीमद्भगवतगीता

स्व. श्री श्यामाचरणदत्त पन्त कृत श्रीमद्भगवतगीता का कुमाऊँनी पद्यानुवाद

पछिल अध्याय-१० बै अघिल

अग्यारूं अध्याय - विश्वरूप दर्शन योग


अर्जुन बलाण
मेरो अनुग्रह करणा की तैं, परम गोप्य उपदेश भयो।
तुमरा यो अध्यात्म वचन सुणि मेरो मोह सब हरी गया।01।

कमल नयन! विस्तार सहित सब जीव जगत को जन्म प्रलय।
और तत्वमय ज्ञान सुणो जो छऽ महात्म्य आपणों अक्षयं ।02।

जस तुमलै यो बता आपूँ कैं, तुम उस्सै छा परमेश्वर।
पुरुषोत्तम मैं देखण चाँछ् ऐश्वर्य प्रचुर ऊ रूप तुमर।03।

यदि ऊ मकैं देखूण योग्य छऽ, प्रभो! समझ छा ठीक अगर।
दर्शन निज अव्यय स्वरूप काकरै दियो सब योगेश्वर! ।04।

श्री भगवान बलाण
देख पार्थ रूप तू मेरा हजार, दिव्याति दिव्यसौ सौ प्रकार
देख नान रंगन की बहार, आकार अतुल अद्भुत प्रकार।05।

आदित्यन कै बसु रुद्रन कैं, अश्विनी कुमार मरुद्गण कैं।
देख् ले जे पैली कभैं नि देख सब अचरज कैं यै रण कैं।06।

एकबट्टै देख ले सारै जगत हे गुडाकेश चर अचर सहित
देख् और लै जे देखणों चाँछे, छ मेरी देह में सब्बै स्थित।07।

तन आँखनैल मकैं देखि नी सकलै चिन्मय स्वरूप मेरो अनूप।
ले दिव्य चक्षु मैं तुकै दिछूँ देख मेरो ऐश्वर्य रूप।08।

संजय बलाण
राजन! तब योगेश्वर हरि लै, उतकैं चमत्कार करि दी
दर्शन दिव्य करै अर्जुन कैं, परम विराट रूप् धरि दी।09।

भौत भौत आँख् मूखन वाला दर्शन अति अचरज कारी।
धारी दिव्य विभूषण, भारी बहुतै दिव्यायुध धारी। 10।

माला वसन स्वर्ग का पैरी नन्दन गंध विलेपित धरि
विश्वरूप सबनै हूँ अचरज है गै देव अनन्त हरी।11।

सहस्र सूर्य को प्रकाश दगड़ै यदि उठौ अकाश
वी स्वरूप् को विकास, सदृश नि हाके कोई भास।12।

संपूर्ण जगत का सब जन कैं, बहुधा सुविभक्त विभागन कैं,
देखि देवदेव प्रभु का तन कंै, ऊ अर्जुन संभाल नि सक मन कैं।13।

भे अर्जुन विस्मय चकित डरन।छुट पािण कम्प रोमांचित तन।
करि नमस्कार खोर् धरो खुटन् जोडित्र हाथ देव थें कया वचन।14।

अर्जुन बलाण
देखीं सबै देव थें देह ईश्वर! समस्त भूतादि समुदाय को घर।
कमल में बैठी ब्रह्मा महेश्वर, सबै रिखेश्वर स्वर्गाक अजगर।15।

कतुक रूप छन हाथ आँख् खुट पेट, सबै रूप लै रूप छऽ यो अनूप।
न अन्त न मध्य नैं कैंछ आदि, देखीं छ विश्वेश्वर! विश्वरूप।16।

किरीटी गदा चक्रधरी हई,याँ सारे उज्याल एकबटी देख्ण्यूँ
याँ अग्नि ज्वाला छ् रवि द्युति छई, मैं देखि नि सकीणी तुमन देखण्यूँ 17।

जाणण योग्य तुम छऽ हो अक्षर परम, तुमें विश्व का छऽ सदाश्रय परम।
सदा एकरस धर्म रक्षक परम, सनातन व शाश्वत पुरुष तुम परम।18।

पली काल है, तुम बली हे बली, भुजा भौत छन, नेत्र शशि सूर्य छन।
तपी मूख में दीप्त ज्वाला जली, आपण तेज लै लोक संतप्त छन।19।

यो स्वर्ग पृथ्वी का बीची अकाश, तुमे एक फैली छऽ सब्बे दिशन।
अद्भुत महा उग्र यो रूप देखी, प्रभो! लोक तीने विकल भीत छन।20।

सबै देवता मुख में पन्सीणईं, हाथ जोड़ी हुई क्वे त अत्ती डरी।
स्वस्ति कूनी ऋखेश्वर औ सिद्धवर, स्तोत्र उत्तम पढ़ी प्रार्थना स्तुति करी।21।

रुद्र आदित्य वसु औ जो साध्यवर, विश्वदेव अश्विनीसुत मरुत्गण पितर।
यक्ष गंधर्व सुर औ असुर सिद्ध नर, सब चकित चै रईं रूप् देखी तुमर।22।

महाबाहु! कस यो विकट रूप घुट, कतुक मूख आँख औ कतुक हाथ खुट।
बहुत पेट विकरालडाढ़न का लुट, देखी लोक पीड़ित मेरो कल्ज छुट।23।

आकाश पुजणी रंगिल झलझला, चाकल मूख उज्वल आँखा लै ठुला।
ऐसो देखि तुमन चित्त् व्यथा कुटि गई, विष्ण!ु धीरज दगै शान्ति लै लुटि गई।24।

विकराल छन दाढत्र मुख में तुम्हारा, देखी प्रलयकाल जसि ज्वाल धारा।
दिशा भ्रम हई गो, न कें चैन मन कैं, जगत्प्राण! देवेश! प्रसन्न होओ।25।

सबै पुत्र धृतराष्ट्र का, साथ उनरा, राजा महाराज औ भीष्म द्रोणऽ,
कर्णादि सब वीर उनरा दगाड़ में, हमरी तरफ का ले प्रधान योद्धा।26।

सरासर तुमार मूख पंसीणईं, तौं विकराल दाढ़न में कुछ फँसि गईं।
भयंकर बड़ा दाँतना बीच में, देखीण ख्वारन को लै चूरण हई।27।

नदी जस पहाडत्रै चढ़ी वेग मे, समुद्रै उज्याणी जानी दौड़नीं।
उसी कै सबै वीर नर लोक का, तुमरै ज्वलित मुख में पन्सीणईं। 28।

जसी कै लपट कैं लिपटनी आफी, मरणै हूँ सब खैंची उनी पतंगं।
उसी कै विनाशै तैं यों लोक सब, तुमार मूख में पन्सीणईं वेगलै।29।

समस्त लोकन कैं यो चाटि हाली, सबै ओ घा जो यो काटि हाली।
उग्र लै तेज लै सब जगत पाटि हाली, बिलै जस हालौ विष्णु! सब छाँटि हालह।30।

को छौ बताओ आपूँ उग्र रूप! नमस्कार हे देव! रक्षा करौ।
हे आदि! आपूँ कैं चाहूँ जाणण, विदित न्हाति क्ये छ प्रवृत्ति तुमरि।31।

श्री भगवान बलाण, 
मैं काल छूँए लोक नाशै हूँ बढ़ियो, प्रवृत्त छूँ लोक संहार करुलो।
तेरा बिनाउलै यो क्वे नि रौला, जो युद्ध की तैं योद्धा अई छन।32।

यै वील ठाड़ उठ तू सुयश कमैं ल्हे,
शत्रुन कैं जीती ल्हे राजलक्ष्मी।
सबन कैंम्ेंलै आफी मारि हालौ।
अर्जुन तू केवल निमित्त हो बस।33।

भीष्म कैं, द्रोण कैं, कर्ण कैं,
जयद्रथादिक योधा सबन कैं
मारी हैलौ मैंल बिलकुल नि डर तू
बस युद्ध कर बैरि सेना कैं जिति ल्हे।34।

संजय बलाण
ऐतुक वचन सुणि श्री केशव का कामनै अर्जुन हाथ जोड़ी
नमस्कार करि फिरि फिरि कृष्ण हूँ? गदगद औ भयभीत बलाण।35।

अर्जुन बलाण
हृषीकेश! छऽ योग्य आपणा यो कीर्तन, जै में जगत हर्ष प्रमोद ल्हीं छऽ।
राक्षस डरी दश दिशान हूँ भाजनी, नमस्कार सब िसद्ध समुदाय करनी।36।

पूजा तुमरि नाथ! कि लै नि हो, जब, तुम ब्रह्मा है श्रेष्ठ छऽ आदिकर्ता
अनन्त देवेश जगन्निवास! अक्षर तुमै सत् असत् परे जा।37।

तुम आदि देवन में पुरुष पुराणो, सारे विश्व तुमरी काखि में समाणों।
सबै ज्ञान ज्ञानी परम धाम तुम छऽ, अनन्त रूपन रमी राम तुम छ छऽ ।38।

वरुण वायु यम अग्नि का, चन्द्रमा का, प्रजापति पितामह का ले पिता तुम!
प्रभे नमस्कार हजार बारऽ। प्रणाम फिरि फिरि नमस्ते! नमस्ते! ।39।

नमस्कार सामणी पुठा पछिन हूँ, नमस्कार हे सर्व! सबै तरफ बै।
अनन्त विक्रम! अमित वीर्यशाली! सब छ तुमन में सब रूप तुम छऽ।40।

सखा समझि, मूढ़ मैं ंलै कयो हो, रे कृष्ण ! रे यादव! रे सखा कै।
महिमा नि जाणि प्रेम प्रमाद में जो, समान अज्ञान अपमान कर हो।41।

हँसी खेल में या कि भोजन शयन में, एकाल् में हो या सबना दगाड में।
अच्युत! कती कैं जो महिमा घटै हो, क्षमा करि दिया तुम प्रभे अप्रमेयऽ ।42।

पिता तुमैं चर अचर दजगत का, गुरु का लै गुरु तुम अति पूजनीयऽ।
अधिक कहें क्वे तुमनै जसै न्हा, कैं तीन लोकन में प्रभावशाली।43।

प्रणाम चरणतल खोर धरी हो! हे ईश! तुमरी स्तुति प्रार्थना छ।
पिता पुत्र कैं, जसि कै सखा सखा कैं, क्षमा उसी कै प्रियतम! करौ तुम ।44।

अपूर्वदर्शन करी हर्ष भै हो, डरा वील व्याकुल मन पै हई गो।
अतएव वी रूप् मकैं दिखाओ, प्रसीद देवेश! जगन्निवासऽ।45।

हाथन गदा चक्र पैरी मुकुट वी, चाहूँ देखण मैं तुमन उसी कै।
होओ चतुर्भुज, सहस्रबाहो! हे सौमयदर्शन, हे विश्वमूर्ते ।46।

श्री भगवान बलाण
प्रसन्न अर्जुन! मैं छँू तेरी तैं, परम रूप तब तऽ देखा योग रि यो।
विराट, उज्वल, अनन्त, आदिम, तेरा सिवा केल पैली नि देखो। 47।

न वेद न यज्ञ न दान जप लै, न कर्म शुभ करि न उग्र तप लै।
नर लोक मे रूप देखी सको क्वे, देखो जसो ऐल कुरुवीर! त्वीलै।48।

दुखी नि हो और विमूढ़ नी हो, ऐसो घोर मेरो यो रूप देखी।
सब डर छोड़ी प्रसन्न मन हो, वी रूप मेरो अब देखि ले तू। 49।

संजय बलाण
अर्जुन थें यो वासुदेव लै क्वे, स्वरूप पैलो फिरि वी देखायो,
धीरज धरायो डरी मन बँधायो, विराट फिरि सौम्य शरीर आयो। 50।
अर्जुन बलाण
देखी मानव रूप जनार्दन जुमरो अब यो सौम्य मधुर।
चेत आ छ आपणो मैं कन बुद्धि ठीक भै निकली डर।51।

श्री भगवान बलाण
जस त्वीलै देखि सकौ मकैं यो,ऊँ दर्शन अति दुर्लभ छन।
सबै देवता जांलै चानी है जौ उनन कँ यो दर्शन।52।

न वेद पाठेल् न दान दिणा लै, न यज्ञ करि घोर तप हो,
यो रूप् देखणों न शक्य हूनो, जस त्वील क्ेकन देखोछ् ऐति कैं।53।

अर्जुन! जबै अनन्य भक्ति हो, तब केवल यो रूप देखीं।
तत्वज्ञान हूँ तबै परंतप! तब प्रवेश वाँ करी सकीं। 54।

मेरा आश्रय कर्म मेरी तैं, मेरो भक्त हो छोड़ि आसक्ति।
प्राणिमात्र हूँ वैर रहित जो, अर्जुन पुजैं मकैं वी भक्ति। 55।

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