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पुकार - कुमाऊँनी कविता

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पुकार

रचनाकार: चम्पा पान्डे

आपण भाषा में मणी लिखणक कोशिश करि रै,
ट्यौड़ बांग् जौस लै लेखी रहनौल बताया जरुर...

यौ देवभूमि करी छौ पुकारा,
ऐ जाओ कौंछौ आपणा पहाड़ा,
डाना कना बटि लै पड़ी गे टुक्यावा,
किलै नी औना आपणौ पहाड़ा

यौ देवभूमि.......

द्याप्तों की देवभूमि स्वर्ग समाना,
पित्तरों की थाता बुडबाडी की शाना,
यौं कुडबाडि लै लगौरयी धाता,
कभणी खुलला यूं द्वारू का तावा

यौ देवभूमि........

बाज् पड़ीगीना सब खेत् खल्याना,
उनु मजी जामि गोछौ दूब व सिसौंणा,
यूं गाड़ भीड़ा लै लागि रयी आशा,
कभै हली भेंट आपण गुसयू का साथा

यौ देवभूमि..........

नौला गध्यारा और पाणी का पन्य्हरा,
डाई -बोटि भिड़ कनावा और धार् औसिरा,
सबुकी मन मा एक छौ बाता,
ठन्डो पाणी कतु मीठौ के भौलौ स्वादा

यौ देवभूमि.....

चाख भतेरा और गौरु का गुठ्यारा,
बाट चैरयी बर्षों बटीया,
तीज त्यौहारा भौल नौक काम मा,
धूप बत्ती जलै जाया आपणा धेई द्वार मा।।

यौ देवभूमि.......... ।।।
धन्यवाद
*चम्पा *पान्डे*, 26-06-2020

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