
घर कभणि आले
रचनाकार: पुष्पा
आम'क नानतिन परदेश ह'य
आम'ल इकले दिन काटण भ'य
पकडण्डी बटी जब घुँघर बजुने
हलकार जाने ह'य
आमें की आशी बढ़ जानेर भ'य
चिठ्ठी आली नानतिना'क कुशव बात आली
आम डाकिए'क इंतज़ार रुनेर ह'य।।
ज दिन डाकिय'ल आवाज लगे दी
ओ बुढ़िया तेरी चिठ्ठी आरे'क
आम'क चीमाण पड़ी मुखडी में
चकबकान आंख चमकण फे जानेर भ'य
आम सकबकाने घुन'म हाथ धर बेर
चम चम डाकिए पास पूज जानेर भ'य।।
ईजा चिठ्ठी पढ़ धे जरा के लिख रो
आम गालडी हाथ लगा बेर
मुनेई मुड़ी कर बेर दयाप्तों'क नाम लिनेर भ'य
डाकिये'ल पोस्टकार्ड हाथ'म लिबेर क
आमा सब ठीक छू लिख र$$
आगिल मेह'ण द्वी बीसी रुपें ले भजुल लिख र$$
आम'के नो डाल फूल लाग जानेर भ'य
आम अपण आचव'ल पसीण पोछ बेर
चेन की सांस लिनेर भ'य।।
भल है'जो त्यर भली खबर सुणे त्यूल
ईजा एक काम आई कर दे
द्वी आखर लिख दिछिये भल है जान क
यतु'क लिख दे कि चेला घर कभणि आले
हम तेरी आशी लाग रयूँ
बस यतुके लिख दे घर कभणि आले
कुन कुने आमा'क आंख'म
आंसू'क तरतराट लाग जानेर भ'य।।
पुष्पा, 29-06-2020
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