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यौ हाव छ भया - कुमाऊँनी व्यंग्य

यौ हाव छ भया - कुमाऊँनी व्यंग्य, satiric article in kumaoni language, kumaoni bhasha mein vyangya lekh


यौ हाव छ भया

लेखक -‌ ‌मोहन‌ ‌चन्द्र‌ ‌कवड्वाल‌

बड़ि अनोखि चीज छ हाव।  ये विना ज्योंन रोण मुश्किल।  हाव पड़ि गयी त ठीक हुण मुश्किल।  भौत काम करें हाव। कभैं लागि जें, कभैं भरीजें, कभैं फुस्स चारी सरकि जें।  कभैं-कभार तूफान वणि जें, डर।  लैला कि जुल्फों दगाड़ि खेल करें, मजनूक हिय में पणसी जें।  कभैं ठंडी, कभैं गरम, कभैं निवैलि, कभैं शुष्क, कभैं तर-गरम।  हाव पछाणे आग कथकै लग्न छ।  को जङव, घर, कैक कल्ज, कैक तन-मन भड़ियौन छ।  जसिक विकीलीक्स जाणों, अनावकि चोट कनाव कसिक मारणि छ!  कब कैकि पोल खोलणि छ।

हाव फेफड़ों कैं आराम दी, लेकिन गैस बणि बेर हाँट-भाँट डरन बणै दीं।  यो धरती में, आगास में, पाणि में सब जाग हैं। जां क्वे निहुन वांले यो हाव हैं।  छ ने कमालकि चीज।

बेई पड़ोस बटी लछी मास्टर ऐ रौछी।  मैंल पूछौ- 'तुमार च्यलकि पढ़ाई कसि चलि रे?'  कौंण फैटीं, 'के खाक चलि रै।  अरे वीकें अल्मोड़ा कि हाव लागि गे। ठीक उसि कै जसिक हमार नेताओं के देहरादूनकि लागि।'

हाव लै गजब करें।  कई के बाट में धरि दीं, कई के बाट बै खेडि दीं।  कई के धोबिक कुकुर बणे दीं।  कती भरी जें, कती बै निकलि जें।  कती बदवी जें।  कई कैं जिते दी कई कैं हरै दीं।  कतकै ये पार्टी दगडि न्हे जें कतके वी पार्टी दगड़ि।

कविराज हीरा लाल कोनी- 'बेई कवि सम्मेलन में मैंल सब्बै कवियों की हाव निकालि देछ। यसि कविता पढ़ी कि सब फुस्स है गाय।'  मैंल पूछौ- 'तुमरि कविताक शीर्षक के छी?' उनॅल उत्तर दे- 'हाव'।  पोरों में के आपण औफिसाक पुराण बाबू सैप मिलि पड़ीं।  मूख ट्यड़, हात लटकन।  मैल पूछौ- "कि हो?"
उनूंल लटैन के बता- 'अले याल ये थाली हवा पल गई है।'  पैली बटी योई बाबू सैप हाव दगड़ि बात करछी।  आज हवै लै लटैन बणै दी।  हवाई किल्ल बणौन में, हाव में तीर चलौन में यों भौत्ते माहिर भै।  यस पम्प करनेर भै कि तोड़ नी मिलनेर भै।  उ हाव आज उनरै काम ऐ गै।  लेकिन लोग समझनीं कां।  म्यार एक पड़ोसी छें - ज्ञान सिंह। बतौनाछी- 'मेरि ब्वारि के स्यैणी यसि हाव भरि दिनीं कि उ मैत हूँ भाजि जें।'

म्यार‌ ‌एक‌ ‌रिश्तेदार‌ ‌सुदूर‌ ‌पहाड़‌ ‌में‌ ‌नौकरी‌ ‌करण‌ ‌हूं‌ ‌गयीं।‌ ‌वां‌ ‌यसि‌ ठंडि ‌हाव‌ ‌लागी‌ ‌कि‌ ‌हमेशा‌ ‌जुकाम‌ ‌रोण‌ ‌लागि‌ ‌गै।‌ ‌ लोगोल‌ ‌राय‌ ‌दी-‌ ‌'कुछ‌ ‌घुट्टी‌ हुट्टी लिया करें।‌  जकाम‌ ‌‌ठीक‌ ‌हो,‌ ‌लेकिन‌ ‌आब‌ ‌पक्क‌ ‌शरावि‌ ‌बणि‌ ‌गयी'‌ ‌लोगोंल‌ ‌कौ आदिम त‌ त‌ ‌भलै‌ ‌छी,‌ ‌पहाड़कि‌ ‌हाव‌ ‌लागि‌ ‌गे।'‌  उसिक‌ ‌हाव‌ ‌बदलण‌ ‌जे‌ ‌जरूड़ी‌ ‌छ।‌ ‌ तबैत डाक्टर‌ ‌लोग‌ ‌आपण‌ ‌मरीजों‌ ‌के‌ ‌हाव‌ ‌बदलने‌ ‌कि‌ ‌राय‌ ‌दिनीं।‌  लोग‌ ‌कौनी-‌ ‌मेंस‌ ‌कें हावक रुख‌ ‌पछ्याणन‌ ‌चें।‌  ‌बात‌ ‌ठी‌ ‌लै‌ ‌छ।‌ ‌पैली‌ ‌लै‌ ‌लोग‌ ‌यसै‌ ‌करछी।‌ ‌सुग्रीव‌ ‌और ‌‌विभीषण‌ ‌हाव‌ ‌के‌ ‌पछ्याणन‌ ‌में‌ ‌चतुर‌ ‌भै।‌ ‌उसी‌ ‌कै‌ ‌बानर-भालु‌ ‌लै।  रावण‌ ‌दस‌ ‌दिमाग‌ ‌हवे‌ ‌बेर‌ ‌लै‌ ‌हाव‌ ‌के‌ ‌नि‌ ‌समझि‌ ‌सक।‌ ‌ कुछ‌ ‌लोग‌ ‌कौनी‌ ‌ऊ‌ ‌सब‌ ‌समझते‌ ‌हुए‌ लै भेव घुरीणकि‌ ‌सोचनेर‌ भै।‌ ‌ कुछ‌ ‌लोगों‌ ‌कि‌ ‌आदतै‌ ‌यसी‌ ‌होई‌ ‌करें।‌ ‌ऊँ‌ ‌नाव‌ ‌के‌ ‌उल्टी हाव‌ ‌में‌ ‌खिति‌ ‌दिनीं।‌ ‌

हावक‌ ‌रुख‌ ‌देखि‌ ‌बेर‌ ‌राजा-महाराजा‌ ‌संधि‌ ‌करि‌ ‌ल्हिछी।‌ ‌अंगरेज‌ ‌हावक‌ ‌रुख‌ ‌देखि‌ ‌बेर‌ ‌यां‌ ‌बै‌ ‌भाजीं।‌ ‌तबैत‌ ‌ऊं‌ ‌महात्मा‌ ‌गाँधी‌ ‌जास‌ ‌ठुल्ला‌ ‌पंखकि‌ ‌हावकि‌ ‌सामणि‌ ‌ठाड़‌ ‌नी‌ ‌रै।‌  

‌म्यार‌ ‌एक‌ ‌रिश्तेदार‌ ‌पेटकि‌ ‌हावल‌ ‌परेशान‌ ‌छी।‌ ‌डाक्टर‌ ‌उनरि‌ ‌हाव‌ ‌के।‌ ‌ठीक‌ ‌नि‌ ‌करि‌ ‌सकनै।‌ ‌पत्त‌ ‌में‌ ‌कसि‌ ‌पढ़ाई‌ ‌करि‌ ‌रै‌ ‌ऊँनूल।‌ ‌
कश्यप‌ ‌ज्यूक‌ ‌च्यल‌ ‌प्रेम‌ ‌रूपी‌ ‌हाव‌ ‌में‌ ‌यस‌ ‌फँसौ‌ ‌कि‌ ‌पड़ोसकि‌ ‌चेलि‌ ‌के‌ ‌हिं‌ ‌बेर‌ ‌हाव‌ ‌है‌ ‌गो।‌ ‌ जस्सै‌ ‌कश्यप‌ ‌ज्यू‌ ‌एक‌ ‌भौते‌ ‌ठुल‌ ‌सेठकि‌ ‌चेलि‌ ‌दगाड़ि‌ ‌वीक‌ ‌बात‌ ‌पक्क‌ ‌करनाछी,‌ ‌वीकें‌ ‌यसि‌ ‌हाव‌ ‌लागी।‌ ‌यौ‌ ‌त‌ ‌ऊई‌ ‌किस्स‌ ‌ह्वै‌ ‌गै-‌ ‌जस्सै‌ ‌बुलबुलि‌ ‌में‌ ‌ताव‌ ‌आ,‌ ‌उसे‌ ‌म्यार‌ ‌बाबुक‌ ‌काव‌ ‌आ।‌  ‌खैर‌ ‌सयाण‌ ‌लोगोंल‌ ‌कौ-‌ ‌'यौ‌ ‌लौंडकि‌ ‌-गल्ति‌ ‌नी‌ ‌भै,‌ ‌यो‌ ‌समयकि‌ ‌हाव‌ ‌भै‌ ‌जो‌ ‌गलत‌ ‌काम‌ ‌करें।'‌ ‌

एक‌ ‌मिनट‌ ‌रुको‌ ‌महाराज,‌ ‌म्यार‌ ‌इस्कूटर‌ ‌के‌ ‌की‌ ‌हो?‌ ‌अरे‌ ‌येकि‌ ‌ले‌ ‌हाव‌ ‌निकलिगे।‌ ‌हद‌ ‌वैगे‌ ‌ये‌ ‌हाव‌ ‌हुणि।‌ ‌ये‌ ‌बिना‌ ‌के‌ ‌लै‌ ‌नि‌ ‌है‌ ‌सकन।‌ ‌टी.वी.,‌ ‌रेडियो‌ ‌र‌ ‌।‌ ‌में‌ ‌कार्यक्रम‌ ‌नी‌ ‌ऐ‌ ‌सकन,‌ ‌मोबाइल‌ ‌काम‌ ‌नी‌ ‌करि‌ ‌सकन।‌ ‌

भस्मासुरल‌ ‌तपस्या‌ ‌करि‌ ‌बेर‌ ‌शिवजी‌ ‌के‌ ‌यतक‌ ‌हाव‌ ‌भरि‌ ‌दी‌ ‌कि‌ ‌शिवज्यूकि‌ ‌वरदान‌ ‌दी‌ ‌वेर,‌ ‌खुदै‌ ‌हाव‌ ‌गोल‌ ‌है‌ ‌गे।‌ ‌
आब‌ ‌गरमियों‌ ‌में‌ ‌पहाड़ों‌ ‌कि‌ ‌हाव‌ ‌खाण‌ ‌हूँ‌ ‌पर्यटक‌ ‌आल‌ ‌और‌ ‌नानतिनों‌ ‌में‌ ‌ले‌ ‌हाव‌ ‌भरि‌ ‌जाल।‌ ‌अच्याल‌ ‌आंतकवाद,,‌ ‌भ्रष्टाचार,‌ ‌घोटाला,‌ ‌गुंडागर्दी,‌ ‌बलात्कार‌ ‌और‌ ‌ले‌ ‌न‌ ‌मालूम‌ ‌के के‌ ‌हाव‌ ‌चलि‌ ‌रै।‌ ‌सख्त‌ ‌कानून‌ ‌बणै‌ ‌हाली‌ ‌लेकिन‌ हाव‌ ‌फिरि‌ ‌ले‌ ‌बेकाबू‌ ‌छ।‌ ‌ तवैत‌ बुजुर्ग कौंछी -‌ ‌'हाव‌ ‌और‌ ‌पाणि‌ ‌में‌ ‌कैकै‌ ‌बस‌ ‌नीं‌ ‌चलन।‌ ‌ लेकिन‌ ‌यो‌ ‌पक्कि‌ ‌बात‌ छू कि यौ बुराईक हाव लै पलट जालि। हाव भलाई की टिकनेर भे।  यो चार दिन की चाँदनी में सब किस्मक अधेर ह्वै रौ।  हाव दूषित ह्वैगे।  वायु प्रदूषण ले, मानसिक प्रदूषण ले।  यो खराब हाव सब जाग जने।  ये के पासपोर्ट, बीजा, अनुमति के ले नी चैंन।  लेकिन हाव गोल नी हुन चेनि।  एक दिन यस आल जब प्रकृति सब ठीक करि देलि।  आपण तरफ बटी हाव नी बिगाड़नि चे किले कि पितरोंक करी नातरों पिणां।  कौरवोल हाव बिगाड़ी, आखिर खानदान साफ ह्वै गो। 

वीरगाथा काल में वीर रसकि हाव चली, भक्ति काल में भक्ति रसकि। रीतिकाल में श्रृंगार रसकि धारा बगी। अच्याल अंग्रेजियत कि हाव चलि रै। सब तरफ अंग्रेजि जोर पकड़न फैगे। करज करि बेर, जमीन जैजाद बेचि बेर अंग्रेजि इस्कूल में नानतिन पढ़ोंनक जोर वै रौ। कोई भाषा सिखण गलत न्हें, लेकिन जब भाषा हमार आचार-विचार, आहारव्यवहार, सोच-समझ के दूषित करण लागि जै तो सावधान हुणकि जरवत पणे। डर छ काई यू.के. (उत्तराखण्ड) यूनाइटेड किंगडम जस नी बणि जो।

जो भाषा हमरि माटि बै उपजी छ, जो हमार हाव-पाणि में बसी छ। जो हमरि दुद बोलि छ, जो हमरि पछ्याण छ। जो हमार मन कें, पराणों के हरी करें। जै में हम आपणि बात के भलिक के सकलूँ, ऊ भाषाकि हाव चलणि चैं। मलयज बयार जसि, सुगन्ध भरी, तरोताजा करणी, शांति दिणी। यसि भाषा, आपणि पछयाण, कुमाउँनी के नी छोड़ो भै- बैंणियो। कुमाउँनी खाल्ली भाषा न्हांतें, यो कुमाउँ की हाव छ भया, हाव। ये बिना निसास लागों। ये बिना सब परै जस लागों। हाव आपणि भाषा क पक्ष में चलणि चें। अरे ऊ कुमाउँनी कसिक, जो कुमाउँनी बुलान नें। जो हू-हू करों वीतें बिराउ कौल या कुकुर। तो व्यंग कि हाव बै संदेशकि हाव तक सारि बात के समझि जाओ।

शरण धाम, सतौली, पो०- प्यूड़ा (नैनीताल)

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