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पुस्तक समीक्षा - सांचि (कुमाऊँनी नाटक)

पुस्तक समीक्षा - सांचि (कुमाऊँनी नाटक), kumaoni lekh revision of kumaoni play by Tara Pathak, Kumaoni Natak

पुस्तक समीक्षा - सांचि (कुमाऊँनी नाटक)

प्रस्तुति: तारा पाठक


हिंदी - कुमाउनी भाषाक् वरिष्ठ साहित्यकार श्री पूरन चन्द्र कांडपाल ज्यू द्वारा रचित कुमाउनी नाटक - सांचि कि एक समीक्षा म्यरि नजर में।  कुमाउनी भाषाक् सौ समाव में तन मनैल लागी श्री पूरन चँद्र कांडपाल ज्यूक् नाटक विधा पर लेखी यो इग्यारूं पुस्तक छ।  यै है पैंली -उकाव होराव, भल करौ च्यला त्वील, मुक्स्यार, उज्याव, बुनैद, बटौव, इन्द्रैणि, लगुल, महामनखी, छिलुक, हमरि भाषा हमरि पछयांण जास बहुविधिक कालजयी रचना रचि बेर कुमाउनी भाषा कमर दडि़ करण में कांडपाल ज्यू विशेष योगदान छ।

नाट्य विधाक् चार प्रमुख तत्व हुनी-
1-कथावस्तु
2-पात्र
3-रस
4-अभिनय
गौं घरक समाज बटी ल्हिई यो नाटक में वांक् शाब्दिक चित्रण यस जीवंत ढंगैल प्रस्तुत करी छ कि पढ़ते पढ़ते पाठक आपूं कें लै वी समाज में जोड़न भै जां, वी आँखों में लै बर्षों पैंली पिछ्याडि़ छुटी नौव धार, गाड़ भिड़, पाणिकि अध्याव में नौवक् ताव कैं मघुवैल घसोडि़ घसोडि़ पाणि भरण, पाणि ल्हिबेर बिना बातै बतंगड़ हुण जास दृश्य साकार है ऊंनी। करीब करीब सबै गौंनों में रुडी़ दिनों पाणि ल्हिबेर एकन्सा हालात रुंनी, खोरफोडा़ लै है जाई करं अक्सर,कोट कछरी चक्कर लै लागते रुनी। यो एक गौंकि कहानि नि हैबेर पुर पहाडै़ दाश् कैं दर्शै।

बचुलि और जनुलि कथानक में द्वि मुख्य पात्र छन, उनार अघिल पछिल पुर घटनाक्रम चलं,बचुलि जतुकै सिदि सादि छ ,आपण मैंसक आदर करैं,सोचि समझि बेर ब्यौहार करैं, जनुलि उतुकै लडाक मुखफट छ, पुर गौं में सबों दगै बैर धरैं, झाड़ हालि झकड़ करण त वीक बौं हातक् खेल भय।  कुबचन ऊंण नि चितूनि, अंत में आपणि लाटि कड़कड़ में घरघाट है बैठि जैं।

कुल मिलै बेर बाइस पात्र छन नाटक में।  देबू और साबुलि ल्हि बेर कथानक कें प्रवाह मिलं। देबू नई जबानक बिगडै़ल लौंड छ लेकिन थ्वाडै़ फूंफां में ढिल पडि़ जां।  साबुलिकै खातिर यो झकड़ शुरू भौ।  आपणि मै (जनुली)कै चारी उ लै झकडू़ स्वभावैकि छ,उ एकै चार बडै़ बेर नि कूनी शैद यो एतर बबालै नि हुंन।  जनुलिक मैंस बिरदेव जरा सिदसाद किस्मक छ जै पर जनुलि शेर बणि रैं।  बचुलिक मैंस जरा ट्यड़ किस्मक छ,मैंसों कूंण में ऐ बेर बचुलि हुं नक करं और हात लै उठै द्यं।

हर सिंह सभापति,परमू वकील,मुसदेव डंगरी,रतनू दास, तेजू पटवारिक चपरासि, जयमल सेट और श्यामदत्त शास्त्री यों सबै मिलि जनुलि कैं घरघाट बटी बैठै दिनी।

गौं नौव में पाणि भरन तक शुरू होई झकड़ अंत में कछरि जै बेरै खतम हुं, झकड़ खतम हुंणा दगाडै़ कएक चीज खतम है जानी -पैंल त बचुलिक भितेरक डर खतम हुं, उ सांचि बात कूंण हुं अडि़ रैं, जनुली पुर जैजाद खतम है जैं वी टेडा़क् अघिल।  औरों मन में यो पूर्वाग्रह लै खतम है जांकि आदिम लट्ठैलै मरं।  सांचिकि कतु मजबूत जड़ छ अंत में सब जाणि जानी।

नाटक क् प्रमुख तत्व रस लै हुंनी नौ रसों बटी शांत रस यै में वर्जित छ, सांचि नाटक में रौद्र रसै अधिकता छ, वी साक्षात स्वरूप जनुलि भै, कत्ती कूंण नि कूंण गाइ ढाइ (कुशब्द) विभत्सता लै दिनी, नि कूंणी जास बोल बलै बेर अत्ती विद्रूपता ऐ जैं।  बचुलिक अडिगता नाटक कैं वीर रस दगै लै जोणं।

अभिनयक् नजरियैल यो नाटक कैं भौत पुषटता हासिल छ, अभिनयक् चार अंग-आंगिक अभिनय, वाचिक अभिनय, आहार्य अभिनय, सात्विक अभिनय छन।  श्रव्य काव्य, दृश्य काव्य बटी यां श्रव्य काव्य कई जाल।  हरेक पात्र आपण आपण भूमिका में सक्षम छ।  सांचि नाटक में वाचिक अभिनय (संवाद द्वारा) भौत सुंदर ढंगैल प्रस्तुत करि राखौ।  बस शब्दों में कत्ती कत्ती नि कूंणी बोल लै ऐ रीं, जोकि सभ्य समाज में गाइ कई जैं लेकिन जो ढंगैंकि कथावस्तु छ वी हिसापैल इन शब्दों बिना पूर्णता लै नि ऐ सकनि। यैकै वील लेखक सफल लै कई जानी आपण उद्देश्य में।

(मली लेखी समीक्षा में के कमी होली माफि चां, मैं क्वे टिप्पणीकार न्हैंतू। बसमना उद्गार छन।  पुस्तक प्राप्ति मोब 9871388815, कीमत ₹ 120/-)

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