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धाड़ लागण (तरफदारी करना)

धाड़ लागण (तरफदारी करना)-कुमाऊँनी लेख, article about relations among mother in law, daughter in law and grand daughter, kumaoni lekh

-:धाड़ लागण (तरफदारी करना):-

लेखिका: अरुण प्रभा पंत

मैं शारदा आपण आम् कं सहार दि बेर भैर आंगण में माठूमांठ ल्यूणौछी कि पिछ्याड़ बै इज कूण लागि-"तनौर सेवा सत्कार है गोछौ तौ जरा इथकै एजैयै धैं।"  "उणंयु जरा आम् कं पटखाट में बैठै द्युं।"

उसी तो सब ठीक-ठाक छु पर जब लै मैं आपण आमैक मदद करुंऔर उनार दगै बैठ उनैरि बात शुणनू तो मेरि इजौक दिमाग गरम हैजां।  मेरि इज सबनाक लिजि सबनाक सांथ भौत मधुर व्योभार करें,सबन थैं भलीकै बलैं, दिण ल्हिण रीतरिवाज घरौ कामकाज सबै में भौत्तै समझदार छु पर सिर्फ जब जब मैं और आमा एक दगाड़ हुनू तो इज कं रीश(गुस्सा) ए जैं।  जब लै इज घर में नि हुनि तो मैं आपण आम् कं अंग्वाल हाल बेर उनारै दगै बैठ बेर आपण कामकरुं।

हमार बाबू तो अज्यान भ्यार छन यू.एन.मिशन में, मैं लै दिल्ली में जैबेर पढाय करण लागरैयूं, दाद लै भ्यार पढ़न हुं जै रौ और लौक डाउन में हम सब अलग अलग है गेयां।  हमरि इज हमैरि आमौक सब देखभाल तो करें पर मनैमन उकं उनौर पुराण कटु अनुभवाक कारण बस सिर्फ फर्ज अदायगी जस व्योभार करें पर मकं आपण आम् कं देखबेर भौत्तै कलिकलि (दयाभाव) लागें जस लै छु हमरि आम् छु नैं।

हमरि इज जब ब्याकर बेर ए तो हमरि आमौक गायमुखाय और 'कठोर चलनैक' इज कं भलीकै फाम छु और आमैल लै इज कं भौत्तै कष्ट दि राखीं योयी वजैल इज और आमाक बीच में सिध बातचीत नि हुनि, उसी आब आम् पैल्लियाक हैबेर कुछ न्यूड़ि (झुकी,विनम्र) गे और आब पैल्लियौक जौ दैंखर (भयंकर क्रोध) और अकड़ नि दिखूनि पर फिर लै भौत बेर इज कं तानबोलि मारि दीं कि "लै के करणै छै।"  इज अगर आमौक पुराण चलन भुलण लै चाऔ तो नि भुल सकैनि, पुराण चोट फिर हरि है जैं।

एक दिन जब आम् पड़ौसपन एकादशिक कीर्तन में जै रैछी तो मैल इज थैं आम् कं माफ कर दिणैक मिन्नत करी तो इजकूण लागि-"तनुल मकं इतु तौयै राखौ कि अब के बतूं जरा-जरा गलती में जली लाकौड़ और जांठैल मार राखौ, म्यार अलग (माहवारी) हैयी में, बीमार हैयी में कमर तोड़ मिहनत करै राखी, म्यार इजबाबन कं शिट(गाली,अपशब्द) राखौ।  त्यार बाबू थैं मकं डांठ पड़वै राखी।

मकं कभै लै तनुल भलीकै खाण पिण नि दिं।  आब के के बतूं के कूंणी लैकौक नि भौय।  जब तु आपण आमैक धाड़ लागछै तो मकं लागुं कि मेरि आपण औलाद जब म्योर दुःख नि समझैल तो को समझौल।"  आपण इजैक बात शुण बेर मैल आपण इज कं पट्ट पकड़ ल्हे और कौ-"मै सब समझूं पर अब हम सबनैल आम् कं माफ कर दिण  चैं नंतर यो पुराण कटु बातनकं याद कर बेर और पीढ़ी दर पीढ़ी कटु वचनन कं अघिल ल्हि जाण में सिर्फ अशांति और मनमुटाव कलेश छु।  अगर आमैल आपण सासुक भौल व्योभार देखि हुन और उ पढ़ि लेखि हुनि तो  कभै लै ऐस नि करैनि।  भल मैसै भल व्योभार कर सकूं और मेरि इज तौ यो संसारैक सबन है भलि और समझदार, गुणवंत मैस भै बस तु हम सबनाक लिजि और खासकर आपण मनैक शांति लिजि आम् कं माफ कर दे, रोज रोजौक कलह अशांति हम सबनाकै लिजि भलि नि भै।

मैं आमैक धाड़ नि लागनू पर एक दिन तो हम सबै बुढ़ि जूंल तो इजा आब हमार घर बै पीढ़ी दर पीढ़ी ब्वारिनाक लिजि नक सलूक करणैक रीत खतम कर दे।  उ देख उ चौड़  कैसि आपण घोलाक( घौंसले) चड़ानकं खऊंणौ तसिकै आमैल लै हमर बाबूकं खवान्हौल, छाड़ सब राग-द्वेष अल्लै बै नय दिन समझ।
"ओ इजा मेरि नानीनानि चेलि कतु ज्ञान वान बण गे।"

मौलिक
अरुण प्रभा पंत, 05-01-2021

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