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नानछिना'क दिन

नानछिना'क दिन, कुमाऊँनी कविता, kumaoni poem remembering the childhood days, kumaoni bhasha ki kavita

नानछिना'क दिन

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रचनाकार: पुष्पा

मन'के नीं हेई जब
जे मिल गयो सब फोक-फ़ाकि दी
घर का भान घुरे दी, केकणि गाई हुद दी
दे हो महाराज के के बतु
जस'ले मन आई उस कर दी।

पहाड़'क नानतिना उज्याड उसे प्रेम ले उसे
उज्याड सकर हे गयो'त आम बूब'ल
द्वी नणक मारी सिसुड ढांक झपके दी
पकड़-पाकडि बेर गोठ ले डाई दी
मलि बटी खाउँ नि दियुल ले कै'दी।

जब करी डाणा-डण त गोठ'क द्वार खोल दी
नान'क आंख'म आँसू देख बेर बुढ बाढ़ी'ल
नना'क मनु हूँ कस कस काव कर दी
क़भें आड़ू बीं त क़भें काकड़'क फुलुयड दी, दी
सकर हय जे दस पांच डबल'क बिलेद मीठे थमे दी।

क़भें'त,मेर ईजा मीकेँ खाली मीकेँ टोकली
लाड़ लाड़'म आई खा कुन-कुने खूब खाऊँ खवे दी
पे पेट'म पीड'क दगड में पेट'म कसर ले है'छि
पे ईज ले हाथ पकड़ और आम'ल
चुल बटी लाल डंगार जस ताव पेट'म घाल दी।

नानछिना खेल ले अणकस्से जस हय
क़भें पिसी'यक क़भें प्योलि'क दाढ़ी-मूंछ बणे हंस छि
ब्योली ब्याह कर बेर डाण मार दी छि
पहाड़ म नानछिना कस-कस खेल खेली छि
मन'के नीं हेई जब अब तोड़ ताड़ दी।

शब्दार्थ:
भान- बर्तन , 
उज्याड - शैतानियां,
नणक- डांट,
डाणा-डाण - रोना धोना,
कसर - कब्ज,
ताव - लोहे की मुडी हुई छोटी सी छड़ जिसके पिछे लकड़ी लगी होती थी।  उसे पेट की कब्ज आदि रोगों के लिए गरम कर के पेट मे कई जगह स्कीन पर टच जाता था वहाँ की स्किन जल जाती थी।  मुझे अब लगता है यह खतरनाक तरीका था इनका प्रयोग बिल्कुल न करें डॉक्टर की सलाह ले।

पुष्पा, 29-06-2020

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