'

लक्ष्मी - कुमाऊँनी कहानी

लक्ष्मी - कुमाऊँनी कहानी, Ramesh Hitaishi ji ki Kumaoni Kahani Lakshmi, Kumaoni Kahani

लक्ष्मी - कुमाऊँनी कहानी

रचनाकार: रमेश हितैषी

बचुलिक आँख आज जरा धेरै खुलि गई।  उनिल भ्यार गंगा क बुलाण जै सुणी।  उ अपण खाट में बै उठी और द्वार खोलि बेर भ्यार गुठ्यारम ऐ गे।  पाणिकि कसिनि उनिक हाथ में छी।  उनिल द्वी बार गिच में पाणि डाइ बेर कुइन करौ और एक छप्पाक पाणि मुख पर लै मारि दी।  अपण धोती चावल मुखड़ पोछौ और गंग कुक घरक तरफ देखि बेर कण लागी "के बात गंगा आज रातै परि त्यर कलाट-बिलाट किलै पड़िरौ।  "वसिक त बचुलि के सब खबर छ कि गंग कुक घर यूं स्यैणी क्या काम ऐ रे हुनल।   बेई रात बचुली गंग कुक घर जै रैछि।   उनिकें खबर छौ कि तुलसीक भरपुर महण लागि रौ, उनिक चेलि-च्यल कभै लै हैसकूँ।  पर आज तक यस नि हय कि गंग कुक भितेर क्वे परेशानी हो और गंगा गलल उनि नि बुलाय।  आज क्या बात है जो उनिल एक या लै नि कय कि बचुली यति आ कि आज मेरि ब्वारिकें पीड़ हैरै।

वसिक लै इन कामों में स्वैणियोंकी जरवत हैं।  पर आज गंग भौत फनफनै रै।  जाणि के बात है।  बचुलि एक दम समझि गे कि कथें तुलसिकि नानि त नि हैगे।  उ खयाणि लै भौत परेशान छा कि एक सार फव है जानु।  उबिचारिक लै भाग जागि जान।  नानि है गे हुनलि त, गंग त अब उनिकें देखि नि सको।  उ तो पोरा साल कण लै मछी कि दौम्यर बस में च्यल हुनत मैं वक व्या करि दिछी।  यौ ब्वारिक पछिन नि हणी छ म्यर च्यलकि कुड़ि कमनि।  जब यसै बूसकि मुट हल त कुड़िक झोल को झाड़ल।  गंग बस हर दम तुलसी मजी दोष मानी।  उकें किलै म्यर नि हयै च्यल।  मैंलि कौन से च्यलक लिजी क्वे अलग जड़ि खै रछि।  जै दिन बै यौ अलछणि ऐवै दिन बै एक लै खुश खबर नि ऐ। यौँ द्वी बूसक मुट जरूर हैरै उलै स्यूड़ा खई। लोगोंक कस बनिरई गदू जस।

बचुलिल सूर सांस करि बेर गंग के पुछि लि। के बात ये गंगा त्यर आज भौत गिच चलि रौ।  ब्वारि भितेरै पन छ, कि ग्वठ पन है गे। क्या हैरौ नाति कि नातिणि? गंगल गागरु जस मुखड़ करि बेर कौ-होइन्हैगे क्या हणु वी बूसकि मूट छ म्यर च्यलक भाग पर। तू तबै पूछ मछै खरोसि खरोसि बेर। सबू कैं ठंडी पड़ि गे हुनलि।  जाणि कै घड़ि गो म्यर च्यलक वै कुड़ि में। जो दिन बै इनि कल्यायूंउदिन बै बस मैं गिचै चलाण परि छौं। पर एक लै काम ठीक नि हुनय। खेति-पाति बजीगे। गोरू बाहू दास यसी छ। बाघ लै म्यरै बाकरों हणि हय। म्यरै कुखुड़ के बिराऊ मारि यूं।  आजि जाणि क्या क्या हानि हरकत लि बै ऐ रै यौ अपण दगड़।  तिकणि सब खबर छौ पर तू लै जब तक म्यर मुनव खान निकरली तब तक तिकें लै चैन कति आल। इतुक कै बेर गंग अपण भितर हुणि हंगे।

वचुलि कुछ और कण चैछि कि कुंती उनर पारा गोठ बै नाई धोई बै भ्यार आन देखीगे।  उनिल बचुलिक तरफ देखि बै को बचुलि तू गंग परि किलै छेड़ी रै छै राती पर। उबिचारिक डिमाक खराब हैरौ बेई रात बै।  जब बै उनिकि तिसरि नातिणि है गे, तब बै उनिल मुखड़ फुलै रौ। न जाणि क्या कूण चैं। मैहें लै यसै कम छी कि ऐला बेर मैंलि सोचौ एक सारू फौ है जाल।  दा... म्यर च्यलक भाग पर जाणि क्या लेखि रौ।  कसिक उ इनके ब्यवाल। जाणि प्रदेश में के कैक भान माजि वै भरनी हमर पेट। इनूकें कसिक सेंतल।  उनिल त तुलसीक लै जिण हराम करि रौ। तुलसी लै बेई रात बै बस एकै बात करने कि ज्यू इनिक गौ च्यापि दिनू मैं। इन चेलियॉल मेरि जिंदगी खराब करि है। यू सब म्यर बस में जै क्या छ।  मेरि सासुल अब म्यर जिण-खाण हराम करि दिण छ।  मैं जाणनू अपण सासु के।  जब लै इनरि तबियत खराब हैं उबस म्यार इज बाज्यु में जानी।  म्यर बाज्यूक नौ लिबै कूनी- वल धरि रई येति इनर इलाज करणक लिजी डबल। किहणि सेतनू हम इन बूसक मूटू कें।  इतुक कैबै कुंती लै गंग कुक भितेर है गे। बचुलि लै अपण भितेर हैगे।

बचुलिल सोचौ जरा तुलसी कें देखि आनू। कसि हनलि खयाणि।  भौत कमजोर लै है रैछि यो बार।  चलो ज्यान बचि गे बिचारिकि। बचुलि जसै गुठ्यार में गे, कुंतिल को- बचुली पैली भितेर आ, तब जाली ब्वारि कें मिलण, उ बिलकुल ठीक छ। चिंता न कर। गंग त पागल छ। इनि पर डिमाक नि छ। बैठ चहा पे मलि जननों लै द्वी दिन है गई मैं आज यति। इतुक सुणि बेर बचुलि भितेर कंतीक मुखड़ परि बैठि गे। गंग चहा बन ल्यै गे। तीनौल चहा पि बेर गिलास भी धरि दी। कुंतील अपण खल्यत हन बै एक बिड़ि और सलाई निकाई और एक बिड़ि सुल्क दी। फ्वां फ्वां कनै तीन-चार सूड़ में उनिल बिड़ि कि जड़ मारि दि। खाटिक पौ में हाथ धरनै कुंतील कौ- गंगा अब मैं नामकरणक दिन ऊल। वे दिन बैठी रहुल भलिक,ऐल में जानू।

इतुक सुणते ही गंग गुस्सम लाल है गे।  उनिल को- तिसरि बूसकि मुट हैर।  म्यर जो नाति है रौ छै जो मैंलि सारै गौं खवाणु। एक बामण बुलौण उसूलि पाणि लगैद्यल। नानिक ख्वारम तेल घर हणि तू जरूर आए।  तेरि बिदाई त करण पड़लि। त्यर क्याछ नानि हो या नानु त्यरत अपण मतलब रहूं।  इतुक सुणि बेर कुंतीक मिजाज गरम है गोय। उनिल की- अए गंगा त्यर लैकि त छै चेली । तू यसि बात कसिक कै दींछ।  यस नि कन सब अपण-अपण भाग लिबे आनी। तू लै कैकी चेलि छै। तू यसि अलखणि बात किलै कर छी।  तेरी यो नातिणि भौत भागवान छ। इनिक पछिन बै देखिए त्यर कतुक नाति हनी।  तब तू खुद पछताली कि मैंलि क्या त तुलसी हैं कौ और क्या इन हणि कौ।  तू अनपढ़ छै तिकणि निछौ खबर, यौ आपण त क्या तुमर भाग लै लि बेर ऐरै।  इनिक कपाव देखि आ मलियौ तुमर घर लक्ष्मी रूपम ऐ रै, यस नि की। एक दिन तू खुद कौली कि दीदी म्यर बुती गलत बुलाई गो वे दिन।  अब मैं जान मेरि बात ध्यान धरिए।  त्यार बचनों के सणि बेर म्यर मन नामकरण दिन लै आ हणि नि छ पर मैंलि अपण धरम नि बिगाड़न छ।

यौ नातिणी ख्वर में तेल धर हणि ऊल और भौत ठुल आशीर्वाद दिबेर जूल, ऐल मैं जानू।
इग्यारां दिन नामकरणकि तैयारी है है। गंग और तुलसी के छोड़ि सब खुशि है रई। तुलसिक आदिम घर नि छ। तुलसीक सौरल सब इंतजाम करि रौ। भै बिरादरलै बुलै रई। भ्यार रस्यौ लागि।  भितेर नामकरण चलि रौ। बामन अपण श्लोक शास्तर सुणा मई।  चहा-पाणि, विस्कट लै चलि रई।  क्वे तमाख, क्वे विड़ि, क्वे सिगरेट लै फुक मई। तुलसी सौर बारबार यसै कमै कि अरे म्यार त छै चेली हई, तब हौ म्यर च्यल।  जब भाग भोग हों तब मिलूं। हमार मनल के नि हुन।  यो स्यैणि जरा खनतिलि छ इनि के रहण दियौ।  सौरकि बात सुणिबेर तुलसी कें जरा सहार जै ऐजां। वसिक त उनि केंलैखबर छ कि आखिर चललि सासुकि।  उहमेशा यौ कें कि चलो य निर्दयी दुनी में म्यर बाब समान सौर त छ। म्यर नानियोंक बाब त अपणि माँ और म्यर बीच में फसिगो।  उनू हैंलै क्या सिकैत करूं, जस भाग पर हौल उहैबै रहल।  तुलसीक ध्यान तबट्टौ जब बामणल को- अरे जरा सुवै के बुलाओ, नानिक नौ धरण।

कुंतील कौ-मैं ऐगयूं बताओ क्या नौं पड़िरौ भौ कें।  बामणल की- लच्छी, लछुली, लछम। कुंती जरा तेज तराज छौ, उनिल कौ-बामण ज्यू जब ल से नाम ऐरी त लक्ष्मी नौं किलै नि धरनया।  एक नौं लक्ष्मी लै कै दियो।  यो इनर घर में लक्ष्मी बनि बै ऐरै। यैक नौं मलि आज बै लक्ष्मी धरि हा। आज बै इनि हैं लक्ष्मी कया।  बामण सन्न रै गोय। वैल को- हाय काखी तुम कसिक जाण छा कि इनिक नौं लक्ष्मी हण चैं।  मैं त यो बात बाद में बतान पर तुमूल त म्यर गिचकि बात छिनि दी।  लच्छु से लछुली से लक्ष्मी नौँ धरि दियो।

नामकरण बाद तुलसी भितेर ऐ गे। सब लोग नानि भौ कें देखनई। सब कौनै भलि उज्यइ मुखकि छ, चंद्रमुखी छ। क्वे कूनौ नानि भलि है रै दड़ि-मोटि।  पर तुलसी के क्ये लै बात भल नि लागनइ।  बस उ एकै बात सोचनै कि भगवान इनर बचन सुफल है जान। यो मेरि लक्ष्मी बनि जानि।  यौ अपण पछिन बै एक भुला लि आनि त मेरि लै इज्जत र जानि। ज्या केंल भगवान म्यर इष्ट देव उनू परि सहार छ।  इनरू झोल झाड़नी है जो मेरि लै मुक्ति तबै हलि।

अचानक तुलसी सौरल बामण है पुछौ- अहो पंडित जी नानी भाग कस छ, हमर लिजी अघिल पछिल भै-बैणियों लिजी।  अपण बाब लिजी,मां लिजी, जरा खोलो, अपण पातड़। पंडितजील बचन भी नि पड़नदी।  उनूल की-जजमान कुंती काखिल सब बतै हा।  अब मलि क्या बताण,उनिक बचन में आज सरस्वती बैठि रै, आज उजो लै बचन केंल उहीण नि हौ। उनिल कै हा कि यौ तुमर घरकि लक्ष्मी बनि बै ऐरै, तुम विश्वास करो।  भौक भाग भौत भल छ। अब तुमार दिन बदलणी छ।  जजमान खुसी-खुसी मेहमानों के खवाओ।  अघिल साल फिर मैं यो हबेर लिखशी में सामिल हुंल। नामकरण बाद सब लोग अपण-अपण घरों हणि है गय।  सब लोग बामण और कुंती बातों पर विश्वास करि बेर खुशि हैरई,पर गंगा मन में आजि लै संतोष नि हय।  बस उइखार पट्टे लागी है, दौ! इनर कइयल जै क्या हों। जनि परि हणु जाणि उनिक भाग पर क्या छौ।  उ बार-बार योई के म्यर त न च्यल ढंगक छ न आदिम। खालि म्यर लै दिल जगै बै क्या हल। ज्या म्यर च्यलक भाग पर होल उहै बै रहल। जन ज्या हल देखी जालि उभतै,बस।

पंदर-बीस दिनौ बाद एक इस्कूली लौंड एक चिट्ठी लि बेर तुलसी कुक घर आ। वल कौ-बूबू तुमरि चिट्ठी ऐ रे।  तुलसी सौरल को-बबा पढ़ दे।  हमूकें जै क्या ओं पढ़न।  क्या लेखि रो पड़धैं।  उ लौंड चिट्ठी पढ़न लागि गोय।  सब लोग चौंथरम बैठी हय।  सब चिट्ठी सुणन में लागी हाय।  भितेर बै तुलसीक कान लै लागी हय।  उ सोचने कि म्यर जिकर लै करी रै हुनल, पर के करछी लोक लाज लै एक चीज छ।  इतुक जरूर लेखि रौछी कि तुलसी भितेर पन छै आजि।  तुलसील इतुकै सुणि बेर संतोष करि लि।  आज एक लैन सुणि बेर सबूंक मन खुशि है गोय।  उ चिट्ठी में लेखि रौछी कि बीज्यू मैं जो कोठि में काम करछी उ सैपल मैंकें सरकार नौकरी पर लगै हा।  छै महैन बाद पक्क है जूल। मन मनै तुलसी लै खुशि हैगे।  उनिल मन मनै कौ चलौ खशी खबर त मिली।   अंतर यो घर में तो बिलकुल दुखै दुख है गो।  चिट्ठी सुणि बेर गंगाल कौ-अरे उ कुंती बचन सांचि है गो सैत।  उकम छी यौ त्यार घर में लक्ष्मी ऐरै। एक खुसी त मिलि गे।  दुहरि खुशी त तब हलि जब एक दिन इनिक पछिल बै म्यर नाति हल।  तब समझन कि कुंतील सांचि कौ।  तब कूल यौ सांचि ऐरै हमर घर में लक्ष्मी रूप में।

बक्त बितनै गोय।  तुलसी कुक घर में बरगत हनै गे।  खेति-पाति, गोरू-भैंस, बकर-ढिबर सब जग जसै जस हण लागी हय।  छै महिन बाद तुलसीक आदिम घर आय, वल कौ-तुलसी बता, अब मेरि सरकारि नौकरी लागि गे, मैं त्यर लिजी क्या करि सकनू।  उनिल कौ-मैंहणि के नि कुणु बस तुम भगवान हैं यौ दुवा को कि हमर घर एक बंश अधिन बड़नी है जावो।  तुलसीक आदिमल को-पागल है गेछै।  तू अपण हालत देखम छै, कतुक कमजोर है गेछै तू। हमार तीन चेली हैगई, यो लै च्यलै, हमू हणि।  मैं तेरि जिंदगी खतरा में नि डाउण चानू।  इजक बातों में न आ।  पर कभै-कभै यो लै हौ कि कनी जैसी बैठी होनीहार वैसी बैठी बुद्धि।  तुलसीक अधिन उनिक आदिम मजबूर छ। भगवान सकि सुणु। एक साल बाद तुलसीक च्यल है गोय, फिर द्वी साल बाद दुहर च्यल लै है गोय। अब सब जग लक्ष्मी लक्ष्मी है । उनिक वजैल लक्ष्मीक द्वी बैणियों के लै भौत प्यार मिलूं। अब सबूं है पैंली नातिणी पुछी जानी।

एक दिन तुलसीक तीनै चेली बिवाई गई। तुलसी इकलै पड़िगे। सासु-सौर मरि गाय। आदिम सरकारि नौकरी में प्रदेश हय। खेति-बाड़ि, जैजाद सब बिखरिगे। के बखत नन बीमार, कभै तुलसी बीमार जतुक कमाओ उतू है जाधे खर्च। तुलसी बस एक बात सोचे-आंखिरी यस के हौ कि सब कुछ भल चलि रौछी, अचानक सब बदलि गो।  यौ खुशी सोल-सतरै साल तक चली।  जसै मेरिलछ हमर घर बै गैउ दिन बै हमरि दास बिगड़ि गे।  जो च्यलै लिजी सासुक इतुक गाइ खाई यौ लै बारा है गे। कभेयोले सोचन कथें यस त नि होय हुनल कि की जोनना हणि हमूल लछ् दीरै वक हाथ भारि नि हनल। तुलसी के यौ बात भलि नि लागि, उनिल एक दम के दी-नाना यस नि हैसकन...।

एक दिन अचाणचक कुंती तुलसी कुक घर ऐगे।  उनिल कुंतीकि खबर बात पुछी।  वक बाद उनिल पुछौ-लक्ष्मीक क्या हाल छ, ठीक छै, उ अपुण सौरास।  बस तुलसीक आँखों में आँसु ऐ गय।   रुन रुनै उनिल कुंती कैं सब बात बतै दी।  कुंती आज झक्कड़ है गे पर बचन और डिमाक आजि लै वसै छ।  कुंतील कौतुलसीत किलै परेशान है रैछ।  गंगल नि मानि और तूल लै नि मानि।  पर आज मैं एक द्या फिरि कूनू जो तुमर घर में लक्ष्मी छी उ अब दुसरक घर पुजि गे।  यौ सब उनिक भाग पर छी, तुमार भाग पर ना।  तुम त काम कम छिया बस।  जब तक उ तुमार घर छी तब तक तुमर भाग जागि रौछी, अब उ जति जैरै अब उनर भाग चमकिल।  तुमर के नि हय। तुम तब लै वसै छिया अब लै वसै छा।  उअपण भाग अपण दगड़ लि गे बस।  तुलसी सब समझिगे।  लंबी उमर हौ मेरि लछ् कि।  उनिखुटां कान ना बुडौ।

*सुशांत विहार, दिल्ली, मो.-9818054690
सर्वाधिकार@सुरक्षित,
श्री रमेश हितैषी, जनम-22 जुलाई 1969 
निवासी-ग्रा.-झिमार,मल्ला सल्ट
जिला-अल्मोड़ा 
छपी किताब:
•पीड़ (गढ़वाली कविता संग्रह) 
•ढकि द्वहार (कुमाउनी कविता संग्रह) 
•दुखों का पहाड़(हिंदी लेख संग्रह)
•लौटि आ(कुमाउनी-गढ़वाली कविता संग्रह) 
•नौ वर्षक व्या (कुमाउनी कहानि संग्रह)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ