
जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
आज'क
उत्तराखंड में
सब भै , मगर
"पहाड़" नि भै।
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उत्तराखंड बँणीं बाद
मेरि
याददाश्त जऊँण ले
कम - कमै हुँनीं गे।
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स्याव
कव्-कुकुर
ढड़ू
बन-ढड़ू
ग्वाँण
छिपाड़ और
डन्याकि स्याप जै
"नेता" है जाला त
के होल कै हरौछा....?
उत्तराखंड में।
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और जै ले भै
उत्तराखंड में , मगर ....
मनखी'क
"ठंड" है जा्ण...
कतई
भल नि भै।
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नेता
खुशि है रयीं ......
जनांदोलन
ठा्ड़ हुँण है पैलियै
"घुन"
टेकि दिंण रयीं।
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घाम में ले
बाव
सुकिल हुँनी बल
तु
भली कै
आर्सी चायी कर।
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ध्यूड़ लागी
जिन्दगी में ले
आस भयी कूँछा ...
तबै त
टुक में
घाम देखीं रूँ।
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बखत 'क फेर मैयी
मैं कैं
अ-आ
क-ख
और बारखड़ि ले
सिखण तैं मिली।
............
बखत
कैलि देखि राखौ
मनसुप
धरियै रै जानीं।
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मनखिया्क पेटन
कफ्फू बासि रौ
कतुकै भचकाऔ
भरन न्हाँ।
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शब्दार्थ:
ध्यूड़ - दीमक,
टुट में - सिरे पर या छोर पर या चोटी पर,
आर्सी - शीशा,
भचकाऔ - गले तक ठूसना
Nov 09, 11 2017

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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