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जिम कार्बेट पार्काक् शेर.....

कुमाऊँनी भाषा में शेर-शायरी, ज्ञान पंत जी द्वारा  Kumauni Sher-Shayari by Gyan Pant, Kumaoni Shayari

जिम कार्बेट पार्काक् शेर......

रचनाकार: ज्ञान पंत

चार चाँद त 
सुँणि राख्छी मगर 
ते देखि बेरि 
पत्त लागौ ......
"चाँद"  ले 
चौद हुँनीं बल। 
..............
त्यारा वीलि 
यो जिन्दगी 
सितुल है पड़ी ...
नन्तरी 
मेरि जिन्दगी त 
"पहाड़" छी।
..............
आ्ब 
के कूँ पैं ......
"बात" 
आजि ले 
पौरुव 'की जसि 
लागैं।
...............
अकल 
और उमर'कि 
भेंट नि हुँनि ....
यो उमर में ले 
समझ नि ऐ 
-- के करुँ? 
............
मैलि कौछ 
के करुँ .....
हायि ! 
मैं के बतूँ .....
फाव हा्ल मरौ
- स्यैंणि'ल कौछ। 
...........
आँटी 
कूँण 
आजि ले 
भल नि लागन .....
मेरि
स्यैंणि कैं।
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द्वार 
नि लगैयी कर 
उज्याव 
काँ बटी आल। 
...............
दार - फड़ै 
खाल्ली जि हुँनेर भै 
पट्याव - भराँण ले 
जरुरी हुँनी .......
 कल्ज  में
"पाथर" धरणां लिजी ! 
..............
खन्यारू'न 
आजि ले 
के त भये कूँछा 
नन्तरी ......
मेरी न्याँत तुम ले 
किलै याद करना । 
...............
म्यार लिजि
सिन्टई ले
भौत भै .....
ऐ ग्यो त 
निस्वास ......
लागि जनेर  भै।
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शब्दार्थ:
लगैयी - बंद करना,  
द्वार(दार) फड़ै - चिरान (यहाँ आशय पलायन- एक चिन्तन से है), 
पट्याव भराँण - पटरा बल्ली, 
कल्ज - कलेजा, 
खन्यारुन - खंडहर घर में, 
सिन्टई - पहाड़ी मैना

Oct 30, 31 2017
...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार

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