
नदियों कैं पवित्र रखणैकि याद दिलूं गंगा दशहरा
लेखक: श्री चन्द्रशेखर तिवारीलोगनक मान्यता छू कि य द्वारपत्र कै लगैबेर
घर-मकान के प्राकृतिक आपदा और वज्रपातल कोई लै नुकसान नि पुजन।
यैक अलावा चोरि, आग आदिक लैडर व्याप्त नि हुन।
पुरातन काल वटि भारतीय संस्कृति में नदियों कैं द्याप्तनौक जस स्वरुप प्राप्त हुई छु। हमर परंपरा में नदियोंक स्वभाव हमेशा परोपकार करणी वाल मानि जां। एक तरफ जां नदी, गाड़-गध्यार, नौल-धार मनखि और जीव-जंतुओंक प्यास वुझै बेर उननकैं ज्यून रखनी, दुसर तरफ उ नाज-फसल के सिंचि बेर हमर पोषण लै करनी।
नदियोंक दगड़ हमर जुड़ाव पुराण वखत वटि रयी हुई छु। कई पुराण तीर्थ, मठ-मंदिर और शहर आदि इनरै ढीक बसी हुई मिलनी। नदियोंक दगड़ तमाम काथ, गीत और मिथक लै जुड़ी हुई छन। नदी व गाड़-गध्यार कई जागन पर गौं-इलाक व देश-परदेशक सीमाक निर्धारण लै करनी। यैक अलावा समाज में मनखियों व गौं-शहरौंक नामकरण लै नदियोंक आधार पर धरणक परंपरा लै छु। धार्मिक परंपरानुसार आजि लै लोग नाण बखत सप्त नदियोंक पवित्र पाणिक आह्वान करनी।
सनातन धर्म में नदियोंक महत्व मोक्ष प्रदान करण वाल मानी जां और इननमें गंगा कैं सबन है ज्यादा महत्ता प्राप्त हुणक वजहल लोग इकैं देवनदी लै कुनी। पौराणिक आख्यानोंक आधार पर धरती में गंगाक अवतरण जेठ म्हैणक शुक्ल पक्षक दशमी तिथि कैं हुई मानी जां। राजा भगीरथ अपुण घनघोर तपस्याल इदिन गंगा कैं स्वर्ग बै धरती में ल्ही वेर आयीं और तब बटि गंगा दशहरक पर्व मनूणक रिवाज चलन में आ। उत्तराखंडक कुमाऊं अंचल में गंगा दशहरक पर्वक दिन घर व मंदिरोंक प्रवेशद्वार में उल्लासक साथ आकर्षक और रंग-बिरंग दशहरा पत्र लगायी जानी। पुरोहित लोग इननकैं अपुण हाथल बणाई वाद सुरक्षाकवच मंत्रल प्रतिष्ठित करि बेर उकैं अपण जजमानन कैं बांटनि और वदव में उनन धै अनाज व दक्षिणा प्राप्त करनी।
लोगनक मान्यता छु कि य द्वारपत्र कैं लगैबेर घर-मकान कैं प्राकृतिक आपदा और वज्रपातल कोई लै नुकसान नि पुजन। यैक अलावा चोरि, आग आदिक लै डर व्याप्त नि हुन। दशहरापत्र में संस्कृत में मंत्र लै लिखी हुई हुनी। मंत्रक भाव य प्रकार रुनी- 'अगस्त्य, पुलस्त्य, वैशम्पायन, जैमिनि व सुमंतु नामक पांच महर्षि वज्र निवारक छन। मुनि जैमिनिक नाम ल्ही वेर घर में वज्रक भय नि रूंन। भगवान हरि जां सहाय रुनी वां वज्रक विनाश है जां और कोई लै विपदा शेष नि रूंन। कागज पर बणी दशहरा पत्र एक बे एक सुंदर ज्यामितीय डिजाइनल अलंकृत रूनीं। डिजाइन में अक्सर चटक रंगनक प्रयोग करि जां। कोई-कोई दशहरा पत्र में भगवान गणेश और मकरवाहिनी गंगाक लै चित्रण करि जां। पुराण टैम में इननमें दाड़िम, किलमड़, अखरोट, बुरांश और दुसर बोटनक फूल-पातक वणाई प्राकृतिक रंगक लै प्रयोग करी जांछी। अब तो कुछ जागन में छपी-छपाई दशहरा पत्र लै प्रयोग करी जाणी।
इदिन लोग रत्तेब्याण नै-ध्वै बेर गंगाक पुज करनी। सरयू व गोमतीक संगम वागश्यर, भागीरथी व अलकनंदाक संगम देवप्रयागक अलावा रिषिकेश हरद्वार, रामेश्वर, थल सहित कई संगम में लोगबाग स्नान व दान करिबेर पुन्य अर्जित करनी। पहाड़क लोक में हर नदी व गाड़-गध्यार कैं गंगाक जस पवित्र समझी जां। यथार्थ में गंगा दशहराक पर्व मनणक पछिल योई कारण छु। य महान पर्व हमनकैं प्रकृति में प्रवाहमान जलधाराओं कैं पवित्र रखणैकि याद दिलूं। कुमाऊं अंचल में इदिन चीनि, सौंफ व कायिमर्चक शरवत लै वणूनक रिवाज छू और य शरवत कैं अमृत जस मानी जां। मान्यता छू कि इदिन शरबतक पान करणल लोगबाग सालभर तक निरोग रूनीं।
अंततः गंगा दशहराक लोक महत्व कैं ध्यान में रखिबेर नदियोंक साफ-सफाई और उननकैं संरक्षित रखणक काम नितांत जरुरी छन। यैक लिजी समाज कैं आघिन ऐबेर आसपासक नदी व गाड़-गध्यारन कैं वचूणक प्रयास अवश्य करण ह्वल। इमें क्वै संदेह लै न्हति कि उणीवाल बखत में जब यांक नदी और गाड़-गध्यारनक पर्यावरण भौत प्रदूषित है जाल तब उ धीरे-धीरे अलोप है बेर इतिहासक बात लै बणि सकनीं।
चंद्रशेखर तिवारी
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र, देहरादून
मोबाइल : 9410919938
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