
खरी खरी-887 : दिया या झन दिया लिफ्ट
रचनाकार : पूरन चन्द्र काण्डपाल
टैम नि रैगोय आब अनजान कि मदद करण,
जो देखूंरौ दया भाव वीक है जांरौ मरण।
एक न्यूतम बै रात दस बजी औं रौछी घर,
देर है गेछी मणि तेज चलूं रौछी स्कूटर।
अचानक एक च्येलि ल म्यर स्कूटर रोकणक लिजी हात दे,
रातक टैम स्यैणी जात देखि मील स्कूटर रोकि दे।
गणगणानै कूंफैटी मीकैं छोड़ि दियो अघिल तक,
बस नि आइ भौत देर बटि चै रयूं एकटक।
अच्याल कि दुनिय देखि मी पैली डर गोयूं,
वीकि डड़ाडड़ देखि फिर मी तरसि गोयूं।
म्यर इशार पाते ही उ म्यार पिछाड़ि भैगे,
स्कूटरम भैटते ही झट वीकि सकल बदलि गे।
जसै मील स्कूटर अघिल बड़ा, कूंण लागी रुपै निकाल,
नतर मि हल्ल करनू मैंस आफी कराल त्यर हलाल।
के करछी आपणी इज्जत बचूणक लिजी चणी रयूं,
वील म्यार जेबम हात डावौ मी चुप पड़ी रयूं।
एक्कै पचासक नौट बचि रौछी उदिन म्यार पास,
वील म्यार और जेब लै टटोईं, उकैं के नि मिल हैगे उदास।
थ्वाड़ देर बाद उ म्यार स्कूटरम बै उतरि गे,
पचासक नौट ल्हिबेर जाते-जाते मीकैं धमकै गे।
‘चुप रे हल्ल झन करिए, त्येरि सांचि क्वे निमानाल,’
मि कूल य मिकैं पकड़ि ल्या, सब म्यर यकीन कराल’।
जनै-जनै उ मीकैं य कहावत याद दिलैगे,
‘ज्वात लागा लाग, आज इज्जत बचिगे’।
उदिन बटि मी भौत डरन है गोयूं,
लिफ्ट दिण क लिजी कतरां फै गोयूं।
बचपन में पढी ‘बाबा भारती’ कि कहानि याद ऐगे,
जो डाकु खड़क सिंह हूं ‘कहानि कैकं झन बतै’ कैगे।
पर मी मदद करणी मनखियाँ कैं बतूंण चानू,
क्वे भल मानो या नक सांचि बात कै जानू।
कैकं लै लिफ्ट दिण में खत्र भौत छ,
‘आ बल्दा मीकैं मार’ जसि अचानक मौत छ।
तुमुकैं हिम्मत छ त लिफ्ट दीण क जोखिम उठौ,
नतर अणदेखी करो, चुपचाप आपण घर जौ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल, 10.07.2021

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