जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
आ्ब
सड़क ले
मोव थैं पुजि गे ....
सोचूँ !
हम न सही
क्वे त
पुजलो सही
घ !
.............
निस्वास
खाल्ली जि लागों हो ....
ढुँङ-पाथर'न में
आजि ले
धकधकाट
हुनेरै भै ।
.................
बखत पर
लगिल ......
आफि है
हरीं है जानीं, मगर
एक "ठाँङोर" त
चैनेरै भ्यो।
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पत्त नै
कैक इंतजारी में
म्यार गों पनां
ढुँङ - पाथर
आजि ले
आ्ँख ताड़ियै रुँनीं।
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यो सब
हल्लु-पुरी बात न्हाँ
कि खायि-पी और
कुकुरै चार
हड़ी रय.....
जै मन आ्य
हड़ि-हड़ि करी
और एक ला्त
पछिल बै हाँणि दे .....
टिंटांट पाणनै
उथके भाजै और
यू-यू करी त
झिट घड़ि मैयी
पुछड़ हल्कूनै
आजि ऐ पुजै ......
रवा्टौ-गास देखि बेरि
देखि बेरि
कुकुर'क नाँच करण त
ठीक भै मगर .....
तु मनखी छै
भुख रै सकछै
मौक पर
लड़ि सकछै .....
पहाड़ै न्याँत
अड़ ले सकछै .....
और
ज्यादे हुँण पर
ढुँङ ले घुर्यै सकछै
मगर
असल बात त
मनखी हुँणै'की छ
भुल !
तु सब करि सकछै।
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शब्दार्थ:-
पुजलो - पहुँचेगा,
धकधकाट - धड़कन,
ठाँङोर - लकड़ी का सपोर्ट,
लगिल - बेल,
गों पनां - गाँव के,
आ्ँख ताड़ियै रुँनी - आँखें खुली रखना
हड़ी रय - लेटे/पड़े रहे,
टिंटांट पाड़नै - कैं कैं करते (कुत्ते को लात मारने पर),
झिट घड़ि - थोड़ी देर,
रवा्टौ गास - रोटी का टुकड़ा,
घुर्यै - लुढ़काना
Mar 09, 20, 2018
...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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