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मिकें य समझ नि आय

मिकें य समझ नि आय-कुमाऊँनी कविता,poem in kumaoni about our lost heritage,vikas aur parampara pa kumaoni kavita

मिकें य समझ नि आय

रचनाकार: पुष्पा

पेलिका बुढ़बाड़ी पैदल हिठ छि
अब नानतिन कुनि तराण नहां
कुनि विकास हेगो 
गंव फन सड़क पूजिगे
मोटर धड़धड़ाट हेगो
आहा रे मोटरा त्यर आबेर 
जवानों क तराण हरेगो .....

बात पुराणी नाहां
जब बांज क क्वेल 
तिमूर क दातुन करछि
दांत मरण तक मुख'में रुछि
अब मंजन ले हराणो
कस कस पेस्ट ऐजाणो
फिर ले जवानी में दांत टुटणि
कतु जल्दि मनखि बदल जाणि....
कुणि पहाड़ क विकास हेगो 
मिकें लागु आदु मुलुक खाली हेगो

पेली खेती जमीन'क मालिक छि हम
बड़ स्वाभिमानी छि हम
अब हम दूसर,क नॉकर हेगयूँ
इमें बड़ खुश छयूँ हम
यो कसि तरक्की छू
घर हेबेर ले बेघर हेगयूँ हम .....
पेलिक बटि च्यल भियार बे 
ईज बौजु हूं मिलूं हूँ गंव उंछि
अब कस बखत बदिलो
अब च्यल ब्वारी परदेश'म बसि गई
बुढ़ बॉडी पहाड़'म यकले रें गई

च्यल के भेटुहूँ ईज बौजु शहर जाणि
अपड जस मुख लिबेर वापस आणी
ठीके कुंछि आमा कस बखत आय
आघिल के महन पहिंके छाज हुणि
कस विज्ञान क समय आयो
मिकें आई ले समझ नि आयो
सब कुनि विकास हुणों
मिकें य ले समझ नि आयो
भरी पुरि पहाड़ बांज जस हेगो
पहाड़ कि जड़ बुटि क माट हेगो

स्वर्ग जस पहाड़ लोगु'ल छोड़ी हेलो
भ्यार क मनखियों ल पहाड़ हथिये हेलो 
य कसि काव हेगे
मिकें य समझ नि आय....

पुष्पा, 18-05-2021

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