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मूल निवास - कुमाऊँनी कहानी

मूल निवास - कुमाऊँनी कहानी,kumaoni story about migrant pahadi youth,pravasi pahadi par kumaoni kahani

मूल निवास

लेखक: हीरा बल्लभ पाठक

गोर्धन (गोवर्धन) ज्यु खोई भिड़ में भैटी तमांखु पिण लागी भाय्, जरां देरम् हंसी दा लै ऐ गाय्।  दुख-सुखै बात् लागी भाय्।  ततु में एक ज्वान् पैंट बुशट वाल् बुलबुलि फटकाई ऐ गोय्, वील् द्वीनूं तैं पैलाग् कौय त् गोर्धन ज्यु जो पधान लै भाय् पुछि, मिल् नि पच्छ्याण हो को छा तुम।  मैं हरसिंग जी का बेटा जैसिंग ठैरा।

अच्छ्या!  दिल्लि बटि आछा, भैट पै भैट और सुणा बेटा क्य है रीं दिल्लि पनां, त्यर् बाबुलै त् यथां ऊणैं छोड़ि हैलौ।

हां ताऊ जी बिजि रहने वाले ठैरै फिर, टैम ही कहां मिलने वाला ठैरा।  हो होइ पै यस् लै भौयै , पै आज क्ये काम आछै दिल्लि बटि।  वो क्या है न एक मूल निवास का कागज चाहिए, इन्टर पास हो गया ठैरा अब कहीं नौकरी का जुगाड़ देख रहा हूं, उसके लिए मूल निवास का सार्टिफिकेट चाहिए ठैरा, बाबू कह रहे थे गोर्धन ज्यु भले मनखि हैं, उनके पास जाना वो बना देंगे।

ओहो! त् यौ बात छू, पै बेटा तुमर् मूल निवास नि बणि सकन्, आब् तुम यौ गौं क् बासिन्दा नि रया।  अरे ताऊ जी कैसी बात कर रहे ठैरे, हम कैसे नहीं ठैरे बासिन्दे, हमारी जमीन मकान सब ठैरा यहाँ।

गोर्धन ज्यु ल् कौ कि छिया पै पैली आब् न्हैंता, किलैकि त्यर् बाबू नान्छिनाईं दिल्लि न्हें गो दस पन्नर बरष बाद त्यर् बुबुल् जब वीक् ब्या ठरा त् तब ऊ बड़ मुस्किलैल् घर आ और ब्या करियक् हप्त भरि बाद दुल्हैंणि कैं ल्हि बेर् फिरि दिल्लि न्है गो, तब बटि वील् पल्टि नि चाय।  जब तेरि आम् मरी तब लै खबर करी त्यर् बुबूल् हरसिंग फिरि लै नि आय, एक दिन त्यर् बुबु चौंथरम् बटि लफाई पड़ी एक गुट टूटि गो।  त्यर् बाबु कैं फिरि चिट्ठि ल्येखि ऊ फिरि लै नि आय्।  आब् त्यर् बुबु त् बिल्कुलै लाचार है ग्याय तब यौ हंसीदा ल् सात-आठ बरस जांलै, टट्टि- पेशाब बटि खांण-पिंण और दवा-सवा सब्बै करौ और एक सांक्कै भै जस् बणि बेर् उनरि खुब्बै स्यौ करी और मरण है पैली ऊं अपंणि सब जैजाद् मकान समेत हंसी दा क् नाम करि गयीं।  यौ हिसाबैल् तुम आब् यौ गौं क् बासिन्दा न्हैंता और तुमर् नाम परवार रजिस्टर में लै न्हैंति, तब मीं कसिक् बणूं मूल निवास, बतौ।

तब जैसिंग उनर् और हंसीदाक् मुखड़ चाइयै रै गो, फिरि कूंण भैटौ, कि ताऊ जी कुछ ले-दे के बना दो मेरा मूल निवास आजकाल तो सब चलने वाला ठैरा। हजार पांच सौ जो कहोगे दे दूंगा।  गोर्धन ज्यूल् कौ नि बेटा ना मीं यस् ख्वट् काम नी करूंन, तु जा यां बटि।  जैसिगैंल् फिर एक आंखरी कोसिस् करि कूंछा। ताऊ जी ये लो पूरे पांच हजार हैं, आब् ना मत कहना और नौकरी लग गयी तो फिर पांच हजार और दे दूंगा बस, चलो बनाओ मूल निवास।

गोर्धन ज्यु गुस्स में वीक् मुखड़ द्येखौ और जेब बटि मोबाइल निकाइ एक नंबर मिला और कूंण लागी - राम राम हो पटवारी ज्यु .......नमस्कार जरा इथां कै आओ थ्वड़ देरक् ल्हिजी...... यां एक लौंड दिल्लि बटि ऐ रौ मूल निवास बणैं दियौ कूनौ.....ऊ सोबन सिगौंक् नाति छू .............पांच हजार दिणैंक बात करनौ .......हो होइ जल्दि ऐ जाओ और हतकड़ि लै ल्यया दगड़ पार्।  हतकड़ि नाम सुनते ही जैसिंगैल् लगे दी दौड़।  गोर्धन ज्यु कुनै रै गयीं अरे ठैर ठैर अल्लै बणूंनू त्यर् मूल निवास, फिर पटावरि ज्यु कैं फोन कै बेर बता कि आब् ऊणैं कि जर्वत् न्हां ऊ भाजी गौ।

हीरावल्लभ पाठक (निर्मल), June 13, 2021
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर, रामनगर
 
हीरा बल्लभ पाठक जी द्वारा फेसबुक ग्रुप पहरु पर पोस्ट

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