फुलदेई टुपार निरया
(रचनाकार: दिनेश कांडपाल)
आज फुलदेई बधाई दगै बुढ़ बाढ़ि क् पीड़...
फुलदेई टुपार निरया नान् सब्बै बहि गया
यों पहाड़क्, गौंधारु में बुढ़पराणि आसि रया
होई का होयार गया उमिक् लै स्वैंण् रया
झ्वाड़ सरंकार गया उदेखि यौं द्वार रया
यों पहाड़क्, गौंधारु में बुढ़पराणि आसि रया
होई का होयार गया उमिक् लै स्वैंण् रया
झ्वाड़ सरंकार गया उदेखि यौं द्वार रया
मोहरि टोटिल हयी त्वाणां बै गाड़ बहि
न औजी न दमूं रया न नगारां की शान् रई
घट लै बांजि गया बाट लै मेटि गया
चौमासै कि गाड़ जास भिटौई भेटि गया
न औजी न दमूं रया न नगारां की शान् रई
घट लै बांजि गया बाट लै मेटि गया
चौमासै कि गाड़ जास भिटौई भेटि गया
हौंस का पराण गया कौतिकि शान गया
बिखोति, स्याल्दे दगै चेलि बेटि पौंण गया
इसिकै तू चै रयै ओ! पहाड़ूं कि माया
बंण जो भाजि गया ऊं कभ्भै नि आया
बिखोति, स्याल्दे दगै चेलि बेटि पौंण गया
इसिकै तू चै रयै ओ! पहाड़ूं कि माया
बंण जो भाजि गया ऊं कभ्भै नि आया
टुपार् = टोकरी
बहि =बह गये ,चले गए
गौं धार = गांव व उसकी चोटियों
उमि = गेहूं की बाली के आग में भूने दाने
बहि =बह गये ,चले गए
गौं धार = गांव व उसकी चोटियों
उमि = गेहूं की बाली के आग में भूने दाने

@दिनेश कांडपाल
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