जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
आपणैं गों में
भभरी रयूँ ...!
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ज्यूँन रुँणैं ' कि ले
शर्त छ आगहा्न....
खाप ' न मुवांव
हालण छ बल।
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आ्ँख
कान और
खाप
मुँदि बेरि......
ज्यून रुँण है भल
मरण भै।
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एक कूँछी बल.....
बखाई कैं
काव ' कि
नजर लागी।
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ढुँङ में रड़ी
बखत .....
तु
हिटने रयै हाँ।
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तु
औ त सई ....
बा्ट
आफी है जा्ल।
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इचा्व और
कन्हाव 'क ....
बीच मैयी
" फसल " हुनेर भै।
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काव'कि-काल की,
औ-आओ,
इचा्व कन्हाव
देखि
सुँणि बेरि ले
नि बलाला त
कदिनै
"बमै-न्याँत"
फाटि पड़ला।
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तु
भले के नि कौ
मगर
कल्ज में
दूधै न्याँत
"उमाँव" त उनेरै भै।
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बखत 'क इंतजार में
मनखी.......
घर
बँण
कैं को ले
नि रै जा्न।
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कब जाँणैं
खा्प बुज हालला....
"बान"
टुटि गियो त
पाँणि
कतरफै ले जै सकौं।
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के त सुँणों
नई - ताजि
कसि चलि रै.....
के सुँणू
देखि - सुणिं बेरि त
के कूँण जस न्हाँ।
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शब्दार्थ:-
काव'कि - काल की,
औ - आओ,
इचा्व कन्हाव - खेत के दो किनारे
बँण - बाहर, जंगल
बुज - बंद करने हेतु कुछ भी ठूसना
बान - गूल
कतरफै - कहीं भी, किसी तरफ
April, 22, May 11 2018

...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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