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जिम कार्बेट पार्काक् शेर......

कुमाऊँनी भाषा में शेर-शायरी, ज्ञान पंत जी द्वारा  Kumauni Sher-Shayari by Gyan Pant, Kumaoni Shayari


जिम कार्बेट पार्काक् शेर......

रचनाकार: ज्ञान पंत

आपणैं गों में 
भभरी रयूँ ...! 
...............
ज्यूँन रुँणैं ' कि ले 
शर्त छ आगहा्न....
खाप ' न मुवांव 
 हालण छ बल। 
...............
आ्ँख 
कान और 
खाप 
मुँदि बेरि......
ज्यून रुँण है भल 
मरण भै। 
................
एक कूँछी बल.....
बखाई कैं 
काव ' कि 
नजर लागी।
................
ढुँङ में रड़ी 
बखत .....
तु 
हिटने रयै हाँ।
...............
तु 
औ त सई ....
बा्ट 
आफी है जा्ल।
...........
इचा्व और 
कन्हाव 'क ....
बीच मैयी 
" फसल " हुनेर भै।
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काव'कि-काल की, 
औ-आओ, 
इचा्व कन्हाव
देखि 
सुँणि बेरि ले 
नि बलाला त 
कदिनै 
"बमै-न्याँत" 
फाटि पड़ला। 
.....................
तु 
भले के नि कौ 
मगर 
कल्ज में 
दूधै न्याँत 
"उमाँव" त उनेरै भै। 
.....................
बखत 'क इंतजार में
 मनखी.......
घर 
बँण 
कैं को ले 
नि रै जा्न। 
..................
कब जाँणैं 
खा्प बुज हालला....
"बान" 
टुटि गियो त 
पाँणि 
कतरफै ले जै सकौं। 
............
के त सुँणों 
नई - ताजि 
कसि चलि रै.....
के सुँणू 
देखि - सुणिं बेरि त 
के कूँण जस न्हाँ।
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शब्दार्थ:- 
काव'कि - काल की, 
औ - आओ, 
इचा्व कन्हाव - खेत के दो किनारे
बँण - बाहर, जंगल
बुज - बंद करने हेतु कुछ भी ठूसना  
बान - गूल  
कतरफै - कहीं भी, किसी तरफ

April, 22, May 11 2018
...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार

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