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को चितौं - कुमाउँनी भजन

कुमाउँनी कृष्ण भजन, krishna bhajan in kumaoni, kumaoni bhasha mein krishna bhajan

"को चितौं"

रचनाकार: मोहन चन्द्र जोशी
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मोहन हे माधव कृष्ण के कौं ?
म्यर मन की कओ को अौर चितौं ।
जीवन का पल पल जदु लै बितो।
हर क्षण तुमरै ध्यान में बितौं।।
मोहन हे माधव . . . .।

ॐ वासुदेव श्री कृष्ण मुरारी।
हे यदुनन्दन गोवर्धनधारी।।
भली भलि छीप तुमरि साँवली।
कन्हैया की बात निराली भली।।
मोहन हे माधव . . . .।

कंस का कैद वसुदेव देवकी।
,माया ल् मति उ फेर कंस की।।
वंदीगृह मथुरा में जनम ल्हि।
यशोदा माता झुलैंत पालकी।।
मोहन हे माधव . . . .।

गोपाल गोरूं का बीच बिहारी।
मुरली मधुर बजौंण लागि रीं।।
रास मधुर संग राधा गोपी।
ट्यड़ है बांकेबिहारी ताँकि रीं।।
मोहन हे माधव . . . .।

छवि अति सुन्दर राधा पति की।
यदुनाथ सुदामा की हरि विपत्ति।।
तुमुं जस दुसर मितुर क्वे न्हैंती।
हो दास तुमर विपद के उहैंजी।
मोहन हे माधव . . . .।

जत्ति मिं रौ रया तुम उत्ती।
जसि-तसि मेरि धरि दिया पत्ती।
गिरधर नागर यै छू विनती।।
कृपा करि दियो आपणी भक्ति।।
मोहन हे माधव . . . .।

महाभारत पारथ का सामणी।
योगेश्वर गीता कैं वाचणी।।
तब अर्जुन माया कैं जाँणीं।
गांडीव हाथों में थाँमणीं ।।
मोहन हे माधव . . . . ।

मोहन जोशी, गरुड़, बागेश्वर। 10-08-2016
श्री मोहन चन्द्र जोशी जी की पोस्ट फेसबुक वॉल से साभार

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