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पूर्णागिरि - नैसर्गिक आनन्द की प्राप्ति के साथ ही आध्यात्मिक अनूभूतियाँ

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🔥पूर्णागिरि: प्रकृति ने पसारी बाहें🔥

नैसर्गिक आनन्द की प्राप्ति के साथ ही आध्यात्मिक अनूभूतियाँ

(लेखिका: डॉ. उषा अरोड़ा)

हिमालय के उत्तर पूर्व में समुद्रतल से लगभग पांच हजार फीट की ऊंचाई पर पूर्णागिरि है।  यहां तक पहुंचने के लिए टनकपुर पहला विश्राम स्थल है।  यहां तक रेल आती है।  पीलीभीत, हल्द्वानी, खटीमा, शाहजहांपुर आदि समीपवर्ती स्टेशन हैं।  आगरा से मथुरा-कासगंज-बरेली होते हुए टनकपुर तक रेल सेवा है।

बस और टैक्सी से टकनपुर, सभी क्षेत्रों से जुड़ा है।  टनकपुर प्राकृतिक रमणीय स्थल है।  हिमालय पर्वत से निकलने वाली शारदा नंदी यहां पर्वत के नीचे बहती है।  नदी का सौंदर्य सैलानियों को मोह लेता है।  यहीं से जंगल का आरंभ होता है।  पूर्णागिरि जाने का यह प्रवेश द्वार है।

ककराली गेट बस स्टैंड से बस और टैक्सी मिलती है।  जो लगभग 14 किलोमीटर के जंगल को पार करती हुई ठूलीगाड़ पर बने अस्थायी बस स्टैंड पर पहुंचती है।  दौड़ती गाड़ी, सड़क के किनारे दूर-दूर तक बड़े वृक्ष, सरसराते पत्तों की आहट बदन को चूमती प्रतीत होती हैं।  चढ़ाई के साथ गाड़ी की गति धीमी होने लगती है। रानीघाट के मैदान के पास ही प्राचीन महादेव मंडी, भीम का रोपा वृक्ष, पांडव रसोई है।  यहां से बांसी की चढ़ाई शुरू हो जाती है।  नीचे का सुंदर दृश्य सैलानी कैमरे में कैद कर लेते हैं।  पहाड़ी के खैर और साल के वृक्ष, वृक्षों के बीच से बार-बार झांकती नदी, ढलान पर ढलाननुमा बने पत्थर और लकड़ी के मकान घनेरे बादलों के आते ही छिप जाते हैं।  गाड़ी धीमी गति से पहाड़ी रास्ते पर बढ़ती जाती है।  हनुमानचट्टी को पार करते हुए लादीखोला आता है।  थोड़ी दूरी पर चमन बाजार है।  कुछ छोटी दुकानें हैं, जहां से जरूरी सामान ले सकते हैं।

भैरों मंदिर: 

कटौदिया नौला पर तीन मंजिल का पर्यटक आवास गृह दिखायी देता है।  इसके आगे आधा किलोमीटर की दूरी पर ही भैरों मंदिर या भैरवचट्टी है।  यहां टैक्सी और गाड़ी खड़ी करने की व्यवस्था है।  यहां धर्मशाला, प्याऊ, दुकानें, चाय और खाने की सुविधा है।  यहां आवास गृह में सामान रखकर विश्राम कर पैदल यात्रा शुरू करनी होती है।  हाथ में डंडा आरामदायक है।  जो महिलाएं सलवार-सूट पहनती हैं, उनके लिए चढ़ने में यह पोशाक आरामदायी है।  अच्छा हो यदि यात्रा का आरंभ सुबह के समय करें, ताकि शाम तक मां पूर्णागिरि के दर्शन करके लौट आयें।  रात को आठ बजे तक जनरेटर द्वारा रास्ते में कुछ दूर-दूर तक बत्तियां हैं।  आठ बजे के बाद जनरेटर बंद हो जाता है।  इसलिए टार्च साथ में जरूर ले जाइए।  हरियाली और जंगल के बीच पैदल यात्रा शुरू होती है।

मां पूर्णागिरि मंदिर: 

यात्रा चढ़ाई भरी है, बीच-बीच में सीढ़ियां हैं।  बावली कूसुलिया को पार करके टुमास है।  इस स्थान पर मुंडन संस्कार होता है।  यहां तिरपाल और बांस के झोपड़ीनुमा अस्थायी मकान है, दुकानें हैं।  यहां पर पानी के झरनों से पाइप लाइन द्वारा पानी टंकियों में इकट्ठा किया जाता है, जिनमें हमेशा पानी आता है।  ये झरने कभी नहीं सूखते  चाय पाउडर के दूध की मिलती है पर स्वादिष्ट होती है। 

टुमास से आगे बांस के जंगलों के बीच चढ़ाई है। इसके बाद ही कदार शिखर पर पूर्णागिरि मां का मँदिर है।  मां भक्तों की इच्छा पूर्ण करती हैं, इसलिए इन्हें पूर्णागिरि मां कहते हैं।  शिवमहापुराण, देवीभागवत पुराण आदि ग्रंथों में वर्णित दक्ष प्रजापति के यज्ञ में सती ने स्वयं को भस्म कर लिया था।  भगवती सती के वियोग के कारण शंकरजी संतप्त हुए और सती के शरीर को लेकर भ्रमण करने लगे।  समस्त संसार को अपने कोप से उद्वेलित कर दिया।  यह देखकर भगवान विष्णु ने उनके सतीमोह को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के पार्थिव शरीर के खंड-खंड कर दिये।  जिन स्थलों पर यह अंग गिरे, वहीं शक्तिपीठ, स्थापित हुए। पूर्णागिरि भी उन्हीं पीठों में से एक है।  यहां सती का नाभिवाला भाग गिरा है।

मां की प्रतिमा के सामने ही पर्वत शिखर पर एक गहरा छिद्र है, जो बांबी की भांति है।  उसका दूसरा छोर शारदा नदी में जाकर निकलता है।  मंदिर बहुत शांत और सौम्य स्थान पर है।  आध्यात्म की लहरियां पूरी तरह प्रभावित करती हैं और मस्तिष्क मां के चरणों में स्वत: झुक जाता है।  आकाश की ऊंचाई को छूती आनंद की लहरें, मंदिर की आरती, गूंजते घंटे सम्मोहन में बांध लेते हैं।  इस यात्रा में नैसर्गिक आनंद की प्राप्ति होती ही है, साथ ही आध्यात्मिक अनुभूति और मन की कामना भी पूरी होती है।

-डॉ. उषा अरोड़ा
दैनिक उत्तर उजाला, नैनीताल, 05-04-2022 से साभार

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