
-:आज का कुमाऊँनी पाठ:-
लेखिका: अरुण प्रभा पंत
१. अटकल जोगी फटकल छाला, जतकै जाला उतकै खाला
अर्थात
असल जोगी स्वतंत्र व स्वच्छंद ही है कम साधन बिना किसी से आबद्ध हुए यायावर जीव
२. अकलाक पछिल लट्ठ
अर्थात
जानबूझ कर बेवकूफी करने वाले के लिए प्रयोग किया जाता है।
३. आंस आखन बै उनी, घुनन बै नै
अर्थात
अपनों को ही अपनों का दर्द होता है
४. राफैल जलि अगासैकि बिजुलि थैं के डरौल
अर्थात
जो हल्की घर की ताप से झुलझ गया वह बड़े उत्पात से क्या डरेगा !
५. ज्यून जित लातम लात मरि बेर खिरखाज (दूध में पका मीठा भात)
अर्थात
जीते जी अच्छा करो मरके किया तो क्या किया
६. झाड़ हालबेर झकौड़ करण
अर्थात
हर हाल में लड़ना
७. झगड़ में छार खितण
अर्थात
वैमनस्य झगड़ा खत्म करना भूलना
८. जैल गाड़ खुट नि खितौ उं बग्याल के, क्यातैं
अर्थात
जिसने नदी में पैर ही न धरा वह बहायेगा क्या
९. जाल पूरुब कं, बताल पछिम कं
अर्थात
अपने कार्यक्रम की गलत जानकारी देना अर्थात छिपाना
चलौ इतु करौ पै याद, पै देखुंल भोल
मौलिक
अरुण प्रभा पंत, 25/27-05-21
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