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कत्यूरी शासन-काल - 07

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कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल - 07


पं. बदरीदत्त पांडे जी के "कुमाऊँ का इतिहास" पर आधारित

वर्तमान में कुमाऊँ का जो इतिहास उपलब्ध है उसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश राज से पहले कुछ वर्षों (१७९० से १८१७) तक कुमाऊँ में गोरखों का शासन रहा जिसका नेतृत्व गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने किया था और वह पश्चिम हिमाचल के कांगड़ा तक पहुँच गया था।  गोरखा राज से पहले चंद राजाओं का शासन रहा।  अब तक जो प्रमाण मिलते हैं उनके अनुसार कुमाऊं में सबसे पहले कत्यूरी शासकों का शासन माना जाता है।  पं. बदरीदत्त पांडे जी ने कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल ईसा के २५०० वर्ष पूर्व से ७०० ई. तक माना है।

तीसरा ताम्रपत्र राजा निम्बतेदेव तथा उनके पुत्र इङ्गागदेव या इष्टहरगादेव तथा उनके पुत्र ललितसूरदेव ने लिखा है। ये तीनों राजा बागीश्वरवाले राजाओं में से हैं। इनमें और बातें राजा सुभिक्षदेव के ताम्रपत्र की तरह ही हैं और संवत् इसमें २२ है। चौथे ताम्रपत्र में राजाओं के नाम तीसरे ताम्रपत्र के समान हैं। सिर्फ उक्त देशों के अतिरिक्त अंग, बलोघ्र दो और देशों में अपना राज्य-विस्तार ज़्यादा होना बताया है और संवत् इसमें २१ दर्ज है।

एक ताम्रपत्र में अपने विजयराज्य के २१वें वर्ष में श्री ललितसूरदेव ने अपनी रानी श्यामादेवी के कहने से गोरुन्नासारी में कुछ गाँव नारायण भट्टारक को दिये हैं। उसमें राजमंत्री का नाम विजक है, युद्ध-मंत्री का नाम अर्यट तथा लेखक का नाम गंगाभद्र हैं।

दूसरे ताम्रपत्र में भी २२वें विजयराज्य के उपलक्ष में नारायण भट्टारक को कुछ गाँव दिये गये हैं। और इसमें भट्टारक महोदय की कीर्तिं इस प्रकार गाई गई है-"जो गरुड़-आश्रम के विद्वानों से पूजित हैं।" ज्ञात होता है कि गरुड़-आश्रम में विद्वान् पुरुष रहते थे, जो पठन-पाठन का काम करते थे, और नारायण भट्टारक उन सबके प्राचार्य थे। अलखनंदा के किनारे तपोवन ग्राम की जागीर इनको दी गई है। हस्ताक्षर उन्हीं शासकों के हैं, जिनके नाम ऊपर दिये हैं। इन ताम्रपत्रों में तीन नाम हैं:-
सम्राट नेम्बर्तदेव और उनकी रानी नाथदेवी
सम्राट ईष्टाङ्गदेव उनकी रानी दिशादेवी
सम्राट ललितसूरदेव उनकी रानी श्यामादेवी

ये सब ताम्रपत्र कार्तिकेयपुर की मुहर से जारी किये गये हैं। दूसरे दो तामपत्रों में अन्य राजाओं के नाम हैं, जिन्होंने काली कुमाऊँ के बालेश्वर मंदिर को भी भूमि चढ़ाई है। इनमें से भी एक कार्तिकेयपुर से जारी किया गया है। तिथि इस प्रकार है- प्रवर्धमान विजयराज्य संवत् ५ अपने राज्य के पाँचवें वर्ष में यह हुक्मनामा ईशाल प्रान्त के प्रबंधकों के नाम हैं। दैशटदेव ने इसे जारी किया है, और विज्ञेश्वर को यमुना का गाँव जागीर में दिया है। इस तामपत्र में सलोनादित्य तथा उसकी रानी सिन्धुदेवी का नाम है, जिनके पुत्र दैशटदेव हैं। इसमें राजमंत्री का नाम भट्ट हरिशर्मा है, युद्ध-मंत्री का नाम नंदादित्य है और लेखक का नाम भद्र है। और शिला-लेख बालेश्वरमंदिर में रक्खा है।

दूसरा ताम्रपत्र जो कार्तिकेयपुर से विजयराज्य २५, संवत् २५ में जारी किया गया है, टंगनपुर के राजकर्मचारियों के नाम है। पद्मात देव पुत्र दैशटदेव ने द्रुमती के चार गाँवों की जागीर बदरीनाथ के नाम चढ़ाई है। इसमें उक्त नामों के अतिरिक्त दैशटदेव की रानी पदमल्लदेवी का नाम आया है। राजमंत्री का नाम भट्टधन है। युद्धमंत्री का नाम नारायणदत्त है और लेखक का नाम नंदभद्र है। यह ताम्रपत्र पांडुकेश्वर में है।

जिस ताम्रपत्र में सुभिक्षपर की छाप है, वह विजयराज्य के चौथे वर्ष में जारी किया गया है। इसमें दाता पद्मातदेव के पुत्र सुभिक्षराजदेव हैं। यह टंगनपुर तथा अतंरांग के अधिकारियों के नाम जारी किया गया है। इसमें विदमलका नाम गाँव, मय कुछ और ज़मीन के, नारायण भट्टारक को दिया है। और रत्नपाली-नामक गाँव, जो गंगा के उत्तर में है, ब्रह्मेश्वर भट्टारक को दिया गया है। राजमंत्री कमलापति हैं, सेनापति ईश्वर दत्त और लेखक नंदभद्र हैं। सब नाम इस प्रकार पाये गये हैं:-
१. सलोनादित्य उनकी रानी सिंहावलीदेवी
२. इच्छटदेव उनकी रानी सिंधुदेवी
३. देशटदेव उनकी रानी पदमल्लदेवी
४. पद्मातदेव उनकी रानी ईशाहदेवी
५. सुभिक्षराजदेव
इनमें जो तिथियाँ हैं, वह उन राजाओं की राजगद्दी पर बैठने के समय से जारी की हुई ज्ञात होती हैं। ठीक-ठीक संवत् ज्ञात नहीं हो सकते क्योंकि इनमें विक्रम संवत् दिया हुआ नहीं है।

श्रोत: "कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे, अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा,
ईमेल - almorabookdepot@gmail.com, वेबसाइट - www.almorabookdepot.com

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