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कत्यूरी शासन-काल - 08

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कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल - 08


पं. बदरीदत्त पांडे जी के "कुमाऊँ का इतिहास" पर आधारित

वर्तमान में कुमाऊँ का जो इतिहास उपलब्ध है उसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश राज से पहले कुछ वर्षों (१७९० से १८१७) तक कुमाऊँ में गोरखों का शासन रहा जिसका नेतृत्व गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने किया था और वह पश्चिम हिमाचल के कांगड़ा तक पहुँच गया था।  गोरखा राज से पहले चंद राजाओं का शासन रहा।  अब तक जो प्रमाण मिलते हैं उनके अनुसार कुमाऊं में सबसे पहले कत्यूरी शासकों का शासन माना जाता है।  पं. बदरीदत्त पांडे जी ने कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल ईसा के २५०० वर्ष पूर्व से ७०० ई. तक माना है।

पं बद्रीदत्त पांडे जी लिखते हैं कि जो शिलालेख उत्तराखंड में मिले हैं उन सबमें बड़ा पांडुकेश्वर का ताम्रपत्र है। शिलालेख के बारे में बताते हुए उन्होंने लिखा है कि यह उस ढंग का बना है, जैसे छोटे बच्चों के लिखने की तख्ती। तख्ती के पकड़ने के स्थान में नांदी बना हुआ है। यह ताम्रपत्र बहुत अच्छी तरह से लिखा हुआ है, पंक्तियाँ साफ़ हैं और शिलालेख की भाषा के सम्बन्ध में बताते हैं कि पाली की कुटिल लिपि में लिखा है।

यह भी बताया गया है कि एक तामपत्र यहाँ के प्रसिद्ध कमिश्नर रैमजे (रामजी) साहब ने बंगाल के सुविख्यात पुरातत्त्ववेत्ता डॉ. राजेंद्रलाल मित्र के पास भेजा था। शिलालेख के बारे में पांडे जी ने लिखा है यह लेख बड़े ऐतिहासिक महत्त्व का है, और इस कारण से उसका पूर्ण संस्कृत-विवरण तथा हिन्दी-भाषा अनुवाद कुमाऊँ का इतहास में दिया गया है जो निम्न प्रकार से है:-

११. पांडुकेश्वर का बड़ा शिला-लेख (संस्कृत मूल)

(१)
स्वस्तिश्रीमत्कार्तिकेयपुरात्सकलामरदिति तनुजमनुज भक्तिभाव भरभारानमिता मितोत्तमाङ्ग सङ्गि विकटमुकुट कीरिटविटङ्क कोटिशो लोकता--
(२)
नाना (ताता) यक प्रदीप दीपदीधिति पानमदरक्त चरणकमलामलविपुल बहुल किरणकेशरासा रसारिता शेषविशेष मोषिघनतमस्तेजससस्वधनी धौतजटाजूटस्य--
(३)
भगवतो धूर्जटेः प्रसादान्निजभुजो पार्जितौजित्यनिर्जित रिपतिमिरसपोदय प्रकाशदया दाक्षिण्य सत्य सत्वशील शौच शौर्योदार्यगाम्भीर्यमर्यादार्य वृत्ताश्चार्य--
(४)
कार्यवर्यादि गुणगणालंकृतशरीरः महासुकृति संतानबीजावतारः कृत युगागम भूपाल ललितकीर्तिः नंदा भगवतीचरणकमल कमलासनाथमूर्तिः श्रीमिम्बरस्तस्यत--
(५)
नयस्तत्पादानुध्यातो राजा महादेवी श्रीनाथूदेवी तस्यामुत्पन्नः परममाहेश्वरः परमब्रह्मण्यः शितकृपाणधारोत्कृतमत्ते भकुम्भाकृष्टोत्कृष्ट मुक्तावलीयशःपताका--
(६)
च्छायचन्द्रिका पहसित तारागणः परमभट्टारक महाराजाधिराजपरमेश्वरश्रीमदिष्ट गणदेवस्तस्य पुत्रस्तत्पादानुध्यातो राशी महादेवी श्रीव गदेवी तस्यामुत्पन्नः परममाहेश्वरः --
(७)
परमब्रह्मण्यः कलिकलंक पंकातंक मग्नधरण्युद्धाद्धारधारितधौरेय वरवराहचरितः सहजमतिविभव विभुविभूतिस्थगिताराचक्रः प्रतापदहनः। अतिवै भवसंहारारम्भ--
(८)
संभृतभीम भ्रकुटि कुटिल केसरिसटा भीतभीता रातीभकलभभरः अरुणारुण कृपाणबाण गुणप्राणगण हठाकृष्टोत्कृष्ट सलील जयलक्ष्मीप्रथमसमालिंगनावलोकन--
(९)
वलक्ष्य सखेद सुरसुन्दरी विधूतकरसबलदलयकुसुमप्रकर प्रकीर्णा वंतससंवर्द्धितकीर्तिबीजः पृथुरिवदोर्दण्ड' साधित धनुर्मण्डलबलावष्टम्भबश--
(१०)
वशीकृत गोपालनानिश्चलीकृतधराधरेन्द्रः परमभट्टारकमहाराजाधिराज परमेश्वरश्रीमल्ललितशरदेवकुशली अस्मिन्नेव श्रीमत्कार्तिकेयपुरविषये समुपगतान्--
(११)
सर्वानवनियोगस्थान् राजराजतकराजपत्रासृष्टामात्य सामंतमहासा. मंतठक्कुरमहामनुष्य महाकर्तृकृतिक महाप्रतीहारमहादण्डनायक महाराजमातारशर--
(१२)
भंगकुमारामात्यापरिक दुस्साध्यासाधनिक दशापराधिक चौरीद्धरणिक शोल्किकशौल्मिक तदायुक्तक विनियुक्तक पट्टाकापचारिकाशेषभंगाधिकृत हरत्यश्वोष्ट--
(१३)
बलव्यापृतकभूतप्रेषणिक दण्डिकदण्ड पाशिक गमागमिशाह्निकाभित्वर माणकराजस्थानीय विषयपतिभोगपतिनरपत्यश्वपति + राडरक्षप्रतिशूरि--
(१४)
कस्थानाधिकृतवर्मपाल कौटपालपट्टपालक्षेत्रपालप्रान्तपालकिशोरवरवागोमहिष्याधिकृतभट्टमहत्तमाभीरवणिक्शेष्ठिपुरोगास्तष्टादशप्रकत्य --
(१५)
धिष्ठानीयान् खषकिरातद्रविड़कलिंगशौरहूणोड्ड मेदान्ध्रचाण्डालपर्यन्तानसर्वसम्बसान्समस्तजनपदान्भटाचटसेवकादीनन्यांश्च कीर्तितानस्म --
(१६)
त्पादपद्मोपजीविनः प्रतिवासिनश्व ब्राह्मणोत्तरान् यथाई मत्तयति बोधयति समाज्ञापयत्यस्तु तेस्माद्विदितमुपरिनिर्दिष्टविषये गोरुन्नसायां प्रतिबद्धखषियाक--
(१७)
परिभुज्यमानपल्लिका तथा पणिभूतिकायां प्रतिबद्धगुगुलपरिभुज्यमानपल्लिकाद्वयं एते मयामातापित्रोत्मनश्च पुण्ययशोभिवृद्धये पवनविघट्टिता--
(१८)
श्वत्थपत्रवचलतरङ्गजीवलोकमवलोक्य जलवुद्व दाकारमसारं वायुष्ट वा गजकलभकर्णाग्रचपलाताञ्चालक्ष्यत्वापरलोकनिःश्रेयसार्थसंसाराणवोत्तणार्थञ्च--
(१६)
पुण्येहनि उत्तरायणसंक्रांतो गन्धपुष्पधूपदीपोपलेपननैवेद्यबलिचरुनृत्यगेयवाद्यसत्वादिप्रवर्त्ताय खण्डस्फुटितसंस्करणाय अभिनवकर्मकरणा--
(२०)
य च भृत्यपदमूलभरणाय च गोरुन्नसायां महादेवी श्रीसामदेव्या स्वयंकारायितभगवते श्रीनारायणभट्टारकाय शासनदानेन प्रतिपादिताः प्रकृतिपरिहारयुक्तः --
(२१)
प्रचाटा भटा प्रवेशः अकिञ्चित्प्रग्राह्याः अनाच्छेद्याचन्द्रार्कक्षितिस्थितिसमकालिकः विषयादुद्धतपिण्डास्थसीमागोचरपर्यन्तस्य वृक्षाण्योहृदप्रस्रवणोपे--
(२२)
तदेव ब्राह्मणभुक्तभुज्यमानवर्जिताः यत्स सुख पारंपर्येण परिभुञ्जतश्चास्योपरि निर्दिष्टरन्यतरैर्वा धरणविधारणपरिपन्थि जनादिकोपद्रवोमनागपि न कर्त्त--
(२३)
व्यो नान्यथा ... महान्द्रोहः स्यादिति प्रवर्द्धमानविजयराज्यसम्बत्सरएकविशंतिमे सम्बत् २१ माघ बदि ३ - " महादानाक्षयपटलाधिकृतश्रीपीजकः --
(२४)
लिखितमिदं महासन्धिविग्रहाक्षपटलाधिकृतश्रीमदायटाववनाटङ्कोकीर्णा श्रीगंगभद्रेण--

श्लोक
बहुभिर्बसुधा भक्ता राजभिः सगरादिभिः।
यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम्॥१॥
सर्वानेतान् भाविनः पार्थिवेन्द्रान् भूयो भूयो याचते रामभद्रः।
सामान्याऽयं धर्मसेतु पाणां कलिकाल पालनीयो भवद्भिः॥२॥
स्वदत्ता परदत्ता वा यो हरेत वसुन्धराम्।
षष्टिंवर्षसहस्राणि श्वविष्ठया जायते कृमिः॥३॥
भीता याति लोके सुराणां हंसैयुक्तं यानमारुह्य दिव्यम्।
लोहे कुम्भे तैलपूर्णे सुतप्ते भूमेहर्ता पच्यते कालदूतैः॥४॥
षष्टिवर्षसहस्राणि स्वर्गे तिष्ठति भूमिदः।
अाच्छेत्ता चानुमन्ता च तान्येव नरके वसेत्॥५॥
गामेकाञ्च सुवर्णाञ्च भूमेरप्येकमङ्गलम्।
हृत्वा नरकमायाति यावदाहूति संप्लवम्॥६॥
यानीह दत्ता निपुरा नरेन्द्रैर्दानानि धम्मर्थियशस्कराणि।
निर्माल्यवन्ति प्रतिमानि तानि को नाम साधुः पुनराददीत॥७॥
वाताभ्रविभ्रममिदं समुदाहरद्भिरन्यैश्च. दानमिदमभ्यनुमोदनीयम्।
क्षम्यास्तडित्सलिलबुद्बुदचञ्चलायाः दानं फलं परयशः परिपालनञ्च॥८॥
इति कमलदलविन्दुलोलमिदमनुचिन्त्य मनुष्यजीवितञ्च।
सकलमिदमुदाहृतञ्च बुद्ध वा न हि परुषैः परकीर्त्तयो विलोप्याः॥९॥
श्रीमिम्बरस्तत्पादानुंध्यातः।
श्रीमदिष्टगणदेवः तत्पादानुध्यातः।
श्रीमल्ललितशूरदेवः क्षितीशः।


श्रोत: "कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे, अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा,
ईमेल - almorabookdepot@gmail.com, वेबसाइट - www.almorabookdepot.com

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