'

रीति व सँस्कार में पिठ्या का महत्व

पिठ्यां या तिलक लगाने का महत्त्व, importance of applying tilak in kumaun

कुमाऊँनी रीति व सँस्कार में पिठ्या का महत्व


लेखिका: प्रेमा पांडे

एक जिज्ञासा, उत्तराखँड में पिठ्या (रोली), अक्षत लगा कर स्वागत करना.....

ये बहुत कम लोग जानते है कि उत्तराखँड में पुरुष वर्ग के लोग अक्सर माथे पर तिलक या चन्दन का उपयोग बहुत करते हैं क्योकि यहां देव भूमी कहलाती है व पूजा पाठ पर ज्यादा विश्वास व महत्व देती है।  जो पूजा के समय देवताओ को चढा़या चन्दन रोली स्वयं भी माथे पर लगा लेते हैं।  (इसमें भी एक विज्ञानिक महत्व है)

परन्तु यह भी बता दूं कि यहां कोई त्योहार हो, जनम दिन हो, पूजा हो या कोई भी शगुनार्थ मँगल कार्य हो,   माथे पर चमकता पिठ्या(रोली अक्षत) जरुर लगता है।  जो परिवार में सबकी दीर्घायु व मंगल की कामना करता है। 

यदि परिवारिक जनो को या अतिथी को, कोई भी शुभ कार्य में आमन्त्रि किया गया है, यह वो समय होता है जब परिवार के सभी ईष्ट मित्र मिल कर, खुशियाँ बाँटते हैं व अन्य अतिथी के पहुँचने पर उन्हैं सम्मानित कर बैठाया जाता है।  उन्है रोली अक्षत लगा कर सम्मान दिया जाता है।  मँगल कार्य पूरा होने पर बिदा जब होते हैं उन्है भेंट स्वरुप रुपया या नारियल दिया जाता है।  यदि मेहमान लड़की के ससुराल की तरफ से हैं तो उन्है  भेट स्वरुप कुछ अपनी सामर्थ के अनुसार रु० देकर ही विदा किया जाता है।  

यदि लड़के के ससुराल से हैं तो सूखा पूरा नारियल(गोला) जो खँडित न हो, भेंट स्वरुप दिया जाता है, यह प्रथा शगुनार्थ है, तत्पश्चात  फिर चाहें जो अपनी श्रध्धा बन पड़े।  यदि भूलवस किसी अतिथी को तिलक (पिठ्या) ना लगा हो वह व्यक्ती उस घर से अपने को अपमानित समझता है।  जिससे विशेष ध्यान में रख कर छूट भी जाये तो बुलवा कर क्षमा मांग कर उसका सत्कार किया जाता है।

तिलक.....हिन्दूों की आस्था का प्रतीक।

आपने हमेशा देखा होगा कि किसी भी पूजा में या कहीं जाने से पहले माथे पर तिलक लगाया जाता है।  वैसे तो माथे पर चंदन, केसर आदि का तिलक भी लगाया गया जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा कुमकुम यानी रोली का तिलक किया जाता है।  भले ही पूजा में कुमकुम का तिलक लगाया जा रहा हो या फिर किसी और मौके पर तिलक लगाया जा रहा हो, इन सभी में एक बात ये होती है कि तिलक करने के बाद उसके ऊपर कुछ दाने चावल के भी लगाए जाते हैं।

तिलक लगाना हिंदू परम्परा का एक विशेष कार्य है।  बिना तिलक लगाए ना तो पूजा की अनुमति होती है और ना ही पूजा संपन्न मानी जाती है।  तिलक दोनों भौहों के बीच में, कंठ पर या नाभि पर लगाया जाता है।  तिलक के द्वारा यह भी जाना जा सकता है कि आप किस सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते हैं।  इससे स्वास्थ्य उत्तम होता है. मन को एकाग्र और शांत होने में मदद मिलती है।  साथ ही ग्रहों की उर्जा संतुलित हो पाती है और भाग्य विशेष रूप से मदद करने लगता है, घर में सुख-शांति रहती है।

माना जाता है कि चंदन का तिलक लगाने वाले घर में अन्न-धन पर्याप्त मात्रा में रहते हैं और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।  साथ ही इससे शांति भी मिलती है।  वैसे लोग तिलक को विजय के रूप में भी देखते हैं।
तिलक लगाने के नियम क्या हैं?
- बिना स्नान किए तिलक ना लगाएं।
- पहले तिलक अपने इष्ट या भगवान को लगाएं।
- फिर स्वयं को तिलक लगाएं।
- सामान्यतः स्वयं को अनामिका उंगली से, तथा दूसरे को अंगूठे से तिलक लगाएं।
- तिलक लगाकर कभी न सोएं।

कोई मांगलिक शुभ कार्यों में या शुभ समाचार सुनने में व परिवारिक अतिथी के पहुँचने पर शँख घन्टी बजाने की प्रथा सदियों से चली आरही है।  ऐसी है हमारे उत्तराखण्ड की  रीति, कहो कैसी लगी.....?

प्रेमा पांडे, 28-09-2021

प्रेमा पांडे जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा से साभार
प्रेमा पांडे जी के फेसबुक प्रोफाइल को विजिट करें
कुमाऊँनी लोकपर्व और त्यौहारों की जानकारी के लिए हमारे फेसबुक ग्रुप को विजिट करें

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ