'

ऋगवेदाक जलवन्दना मंत्रों मजि जलविज्ञानाक मूल सिद्धांत

वैदिक जलविज्ञान कुमाऊंनी में, vaidik water science in kumauni langugae, vaidik system water management in kumaon hills

ऋगवेदाक जलवन्दना मंत्रों मजि जलविज्ञानाक मूल सिद्धांत

(लेखक: डा.मोहन चन्द तिवारी)

===============================
'आपो देवता’ सूक्त, ऋग्वेद,7.49
कुमाऊंनी भावानुवाद और व्याख्या सहित
आओ पाणिक बात करुल-1
वैदिक जलविज्ञान कुमाऊंनी में
==============================

वैदिक जलविज्ञानक प्राचीन इतिहास पारि अगर ध्यान देई जावो तो वेदोंक मंत्रद्रष्टा ऋषियोंक महत्त्वपूर्ण योगदान छू। वेदों क मन्त्रद्रष्टा ऋषि ‘सिन्धुद्वीप’ सबूं है बे पैल भारतक जलविज्ञानक आविष्कारक ऋषि छी, जिनूल पाणिक प्रकृति वैज्ञानिक‚ सृष्टि वैज्ञानिक‚ मानसून वैज्ञानिक‚ कृषि वैज्ञानिक‚ दुर्ग वैज्ञानिक और ओषधि वैज्ञानिक महत्त्व कें भलीभांति समझौ और वैदिक संहिताओं क रचनाकालक मध्ये पाणि क बारम मूलसिद्धांत उद्घाटित करी और नई नई मान्यताओं क बारम मानव समाज क मार्गदर्शन लै करौ।

आधुनिक भौतिक विज्ञान में जैकें 'प्राकृतिक जलचक्र' यानी ‘नैचुरल सिस्टम ऑफ हाइड्रोलौजी’ नामल जाणि जां, ऊ अवधारणाक आविष्कार सबूं है बे पैलि वैदिक जलवैज्ञानिक ऋषि मुनियोंल करौ। आज यौ वैदिक जलविज्ञानकि नई लेखमालाक शुभारंभ दुदबोलि कुमाऊंनी भाषा में करी गे ताकि हमरि मातृभाषा में साहित्य विषयक अलावा विज्ञान विषय पर लै चर्चा परिचर्चा शुरू है सकौ। यौ वैदिक जलविज्ञान सम्बन्धी चर्चाक शुरुआत 'ऋग्वेद संहिता'क अंतर्गत 'आपो देवता’ (7.49) सूक्तक वैदिक जलवन्दना सम्बन्धी चार मंत्रों कि व्याख्या माध्यमल करी गे।

वैदिक जलविज्ञान कुमाऊंनी में, vaidik water science in kumauni langugae, vaidik system water management in kumaon hills

चारों वेदों में सबूं है बे प्राचीन वेद 'ऋग्वेद' मानी जां। मैंल आपणि शोधग्रन्थ "अष्टाचक्रा अयोध्या इतिहास और परम्परा" (उत्तरायण प्रकाशन,2006) में पुर एक अध्याय लेखि राखौ कि वैदिक आर्योंक मूल निवास उत्तराखंड हिमालय छू। या लीजि वैदिक जलविज्ञान हो या मानसून विज्ञान या फिर वृष्टिविज्ञान इन सब विज्ञानों कि जन्मभूमि और पृष्ठभूमि लै उत्तराखंड हिमालयक नदी, पहाड़, गाड़,गद्यार छें। यौ ऐतिहासिक और वैज्ञानिक पृष्ठभूमि कें ध्यान में धरी बेर वेदमन्त्रोंक कुमाऊंनी भावानुवाद और वैदिक जलविज्ञानाक मूल सिद्धांत समझणक प्रयास करी गो।उमेद छू कि परम्परागत भारतक जलविज्ञानक बार में मित्रों कें कुछ नई जानकारी मिल सक्ली और उनार विचारोंल मैंल अवगत है सकुल।

1. स॒मु॒द्रज्ये॑ष्ठाः सलि॒लस्य॒ मध्या॑त्
पुना॒ना य॒न्त्यनि॑विशमानाः।
इन्द्रो॒ या व॒ज्री वृ॑ष॒भो र॒राद॒ ता
आपो॑ दे॒वीरि॒ह माम॑वन्तु ॥१॥
हिंदी भावार्थ-
समुद्र जिनमें ज्येष्ठ है,वे जल प्रवाह सदा अन्तरिक्ष से आने वाले हैं। इन्द्रदेव ने जिनका मार्ग प्रशस्त किया है,वे जलदेव यहाँ हमारी रक्षा करें।
पैल मन्त्रक कुमाऊंनी भावानुवाद-
समुंदर जैक ज्यठ भै छू, माथ अगास बे मुण गाड़-गध्यारों में बगणि ऊं पाणि,कें जो इंद्र देव बाट दिखानि, ऊं जल द्याप्त हमरि रक्षा करनी।

मौसमवैज्ञानिक व्याख्या-

यां वैदिक ऋचा में जो यौ कई गो कि यों पाणिक द्याप्तां (आपो देवता) क ठुल भै यानि ज्यठ भै समुंदर ज्यू छें वीक मतलब यौ छू कि समुंदर बटि जो वाष्पीकरण हों तबै बादलोंक माध्यमल मानसून बननी और बर्ख हैं। या लीजि समुंदर कें ठुल दादि कई गो। यौ बतां कि हमार वैदिक ऋषि-मुनि बहुत ज्यादा चिंतनशील मौसम वैज्ञानिक लै छी। यौ जो 'हाइड्रॉलौजिकल' सिस्टम द्वारा आधुनिक मौसमवैज्ञानिक बर्ख हणक कारण बतानी वीक वैज्ञानिक जानकारी वैदिक ऋषि-मुनियों कें दस हजार साल पैली छी। मगर हमर देश में पराधीन मानसिकताक कारण वैदिक जलविज्ञानक बार में न क्वे शोध करी गो और न कभें मौसम वैज्ञानिकों द्वारा हमर भारत देशक परम्परागत जल वैज्ञानिक चिन्तन कें जाणन सुरण और उगें जमीनी स्तर पर प्रोत्साहित करणकि कोशिश करी गे। या लीजि देश में पाणिक संकट विकराल हैते जांण रौ।

वैदिक जलविज्ञान कुमाऊंनी में, vaidik water science in kumauni langugae, vaidik system water management in kumaon hills

2. या आपो॑ दि॒व्या उ॒त वा॒ स्रव॑न्ति
ख॒नित्रि॑मा उ॒त वा॒ याः स्व॑यं॒जाः।
स॒मु॒द्रार्था॒ याः शुच॑यः पाव॒कास्ता
आपो॑ दे॒वीरि॒ह माम॑वन्तु॥२॥
हिंदी भावार्थ-
जो दिव्य जल आकाश से (वृष्टि के द्वारा) प्राप्त होते हैं,जो नदियों में सदा गमनशील हैं,खोदकर जो कुएँ आदि से निकाले जाते हैं,और जो स्वयं स्रोतों के द्वारा प्रवाहित होकर पवित्रता बिखेरते हुए समुद्र की ओर जाते हैं,वे दिव्यतायुक्त पवित्र जल हमारी रक्षा करें।

दुसौर मन्त्रक कुमाऊंनी भावानुवाद-

यौ जो पाणि द्यो (बारिश) रूप में अगास बेबरसम रौ,यौ जो पाणि गाड़ गध्यारां में बगमौ,यौ जो पाणि गड्ढ खोदि बे नहों (नौलों) में बे निकाली जां,यौ जो पाणि धारों द्वारा आफि (आपण आप बिना जल संयंत्रण प्रयासों द्वारा) निरन्तर रूप से बगते रों और आपणि पवित्रता बनाए हुए दुबारा समुद्रकि तरफ बगि जां,ऊं जल द्याप्त हमरि रक्षा करनी।

मौसमवैज्ञानिक व्याख्या-

यौ वेदमन्त्र आधुनिक जलविज्ञानकि हिसाबल बहुत महत्त्वपूर्ण छू। मन्त्र में अगास बे बरसणि द्यो कि तीन दास-गति या अवस्था बताई गई। (1) पैलि दास छू,उ द्यो पाणि सबू है बे पैलि गाड़ गध्यारां में बगों।(2) दुसरि दास छू- उ द्यो पाणि बरसि बे भूमिगत लै है जां और फिर कृत्रिम रूपल खोदि गई नौलों या कुओं द्वारा लोगों कें मिलों। (3) तिसरी दास छू कि उ द्यो पाणि सदाबहार धारों,झरनों (स्प्रिंग्स) क माध्यमल हमूं कें मिलों।वेद में यौ जल गद्यारोंक और नौलोंक पाणि है बेर बहुत ज्यादा पवित्र मानी गो किलैकि यौ पाणि अविरल रूपल बहते रों और आखिर में समुद्र में मिलि जां। या लीजि निरन्तर रूप से बगणि धारों क पाणि सबू है बे ज्यादा पवित्र मानी जां। यां वैदिक जलविज्ञान क हिसाब ल ध्यान दिण खास बात यौ छू कि नदी, गाड़-गद्यार और नौलों क जल प्रदूषित है सकों, मगर धारों क और झरनों क जल कभें लै प्रदूषित नि है सकौंन। यौ वेद मन्त्र आधुनिक 'हाइड्रॉलौजिकल' सिस्टमक लै भौत भलि मौसमवैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत करों। भारतीय मानसून विज्ञान क एक वैज्ञानिक अवधारणा छू-

3. आकाशात् पतितं तोयं,
यथा गच्छति सागरम्।
सर्वदेवनमस्कार:,
केशवं प्रति गच्छति
कुमाऊंनी अनुवाद
- अगास बे गिरि हुई द्यो जस प्रकार ल समुद्र में बगि जां उस प्रकार ल क्वे लै द्याप्त कें करी गई नमस्कार यानी पूजा-अर्चना श्री हरि अर्थात् श्री विष्णु भगवान् कें प्राप्त हों।
हिंदी अनुवाद- br/> आकाश से गिरा हुआ पानी जैसे समुद्र में जाता है, उसी प्रकार किसी भी देवता को किया गया नमस्कार श्रीहरि (भगवान् विष्णु ) को जाता है
अंग्रेजी अनुवाद-
Just as all the water falling from the sky goes into sea, similarly salutations offered to all Gods go to Sri Hari (Sri Vishnu).

वैदिक जलविज्ञान कुमाऊंनी में, vaidik water science in kumauni langugae, vaidik system water management in kumaon hills

4. यासां॒ राजा॒ वरु॑णो॒ याति॒ मध्ये॑
सत्यानृ॒ते अ॑व॒पश्य॒ञ्जना॑नाम्।
म॒धु॒श्चुतः शुच॑यो॒ याः पा॑व॒कास्ता
आपो॑ दे॒वीरि॒ह माम॑वन्तु॥३॥
हिंदी भावार्थ-
सर्वत्र व्याप्त होकर सत्य और मिथ्या के साक्षी वरुणदेव जिन नदियों और जल धाराओं के स्वामी हैं, वे ही रसयुक्ता, दीप्तिमती, शोधिका जल देवियाँ हमारी रक्षा करें।
तिसौर मन्त्रक कुमाऊंनी भावानुवाद-
सब जाग सांचि और झूठि कें देखणी साक्षीभूत द्याप्त नदियोंक, गाड़-गद्यारांक और जलधाराओंक मालिक जिनार राज वरुण ज्यू छें। ऊं रसमय यानी अमृत जौस पाणिल भरपूर, दीप्तिमान्, सबूं कें आपण जल ल शुद्ध करणी जल देवी हमरि रक्षा करनी।

मौसमवैज्ञानिक व्याख्या-

यौ वेदमन्त्रम बतै राख़ौ कि जतु लै जल-द्याप्त और जल-देवी छें उन सबूंक स्वामी वरुण देव छें। यां ध्यान दिणी बात यौ छू कि वैदिक काल में भगवान् विष्णु सूर्य देवक प्रतिनिधि द्याप्त मानी जांछी और वरुण देव समुद्रक द्याप्त मानी गई मगर पुराणकालक देवशास्त्र में भगवान् विष्णु समुद्रशायी द्याप्त बन गई।

5. यासु॒ राजा॒ वरु॑णो॒ यासु॒ सोमो॒
विश्वे॑ दे॒वा यासूर्जं॒ मद॑न्ति।
वै॒श्वा॒न॒रो यास्व॒ग्निः प्रवि॑ष्ट॒स्ता
आपो॑ दे॒वीरि॒ह माम॑वन्तु॥४॥
हिंदी भावार्थ-
राजा वरुण औऱ सोम जिस जल में निवास करते हैं।जिसमें विद्यमान सभी देवगण अन्न से आनन्दित होते हैं,विश्व व्यवस्थापक अग्निदेव जिसमें निवास करते हैं,वे दिव्य जलदेव हमारी रक्षा करें।
मन्त्रक कुमाऊंनी भावानुवाद-
जो द्यो पाणि में वरुण राज और सोम राज रनी, जिमें सब द्याप्तगण अन्न आदि आहुति भक्षण करि बेर आनन्द लै मनानी,जिमें सब संसारकि व्यवस्था करणी अग्निदेव क सदा निवास रौं, ऊं जल द्याप्त हमरि रक्षा करनी

मौसमवैज्ञानिक व्याख्या-

यौ मन्त्र में जल में विद्युत,सोम आदि जतु लै अदृश्य शक्ति रनी उनर बार में बतै राखौ। सोम नाम वैदिक मंत्रों में सोमरसक लीजि,चंद्रमा लीजि और अमृत रूपी जलक लीजि लै प्रयुक्त हों। सबू है बे ठुली बात यौ छू कि यौ सोमरस जो नदियों द्वारा या चन्द्रमाक किरणों द्वारा पाणि में प्राकृतिक रूपल सम्प्रेषित हैते रों वीक कारण जल कें जीवन प्रदाता कई जां। सदा याद धरिया-

आपण भाषा आपण ज्ञान !
तबै बनौल भारत देश महान्
*सांकेतिक चित्र गूगल बटि साभार*

-© डा.मोहन चन्द तिवारी

डा. मोहन चन्द तिवारी जी की फेसबुक वॉल पर पोस्ट  साभार

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ