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गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु (भाग-१५)

कुमाऊँनी नाटक, गौं बै शहर - यांकौ अगासै दुसौर छु, Kumaoni Play written by Arun Prabha Pant, Kumaoni language Play by Arun Prabha Pant, Play in Kumaoni

-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-

कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)

->गतांक भाग-१४ बै अघिल->>

अंक ३५-

नरैण और पद्माक निकांस्सि चेलि सुनीता जतु पढ़ाई खेलकूद सबै चीज़ में भाग ल्हणाक मामलन में तेज छि उतुकै आपण पड़ौसिन कं तुरंत जवाब दि बेर सबनौक मुख बंद करै दिं।  एक बार वीक हाजिर जवाबी पर बगल में रुणि सुमित्राल कौ कि - "वकील बनियो तू सुनीता"

सुनीता - "वकील क्यों सीधे जज बनुंगी मैं तो"
सुमित्रा - "अरी पद्मा सुनती हो, अपनी इस लड़की की लगाम कसो, यह भोत मुंह फट है।" 
सुनीता - "क्या मैं कोई बैल या घोड़ी हूं जो मेरी लगाम कसी जाएगी, जैसा मुझे ठीक और सही लगता है वही बोलती हूं और बोलुंगी"
सुमित्रा - "तेरी बहनें और पद्मा तो ऐसे जवाब नहीं देतीं ।"
सुनीता - "इसीलिए मुझे देना पड़ता है और मैं अपने और अपने पूरे परिवार की तरफ से बोलती हूं।"
सुमित्रा - "बाब रे यह तो पटाखा है पूरी"

अंक३६-

रात हुं नरैणैल सुनीता कं समझा कि सयांणनाक मुख नि लागन और अगर के बात ग़लत लागैं तो वां बै उठ जाण चै या अगर द्वि ठुल सयाण बलाणयीं तो बीच में नि बलान, यो कमजोरी नि हुनि शिष्टाचार हुं चेली"

सुनीता - मकं पत्त छु पर बाबू हर बखत हमार यां के न के मांगण हुं ऐजैं सुमित्रा आंटी, नंदनाक बाबू लै तो डबल कमूनी हमर यां बै कै मागैं, समझ निऊंन,आपण डबल बचूण चैं।"
पद्मा - हंसते हुए, आब मैं लै समझ गेयूं और कई बेर मैलै कै दिनु कि खत्म है गो।
नरैण - "छाड़ तौ फसक मकं भाल निलागन।  हर जागाक मैस छन यां फर्क तो हुनेरै भौय, कौन सा हमेशा हम दगड़ै रूंल, प्रोमोशनाक बाद दुसौर ठुल घर मिल सकछी पर त्यार इज मंशाणि न्हां"
सुनीता - "हैं इजा"
पद्मा - "यां पड़ौस जाणि पहचाणि है गो, सब ठीक-ठाक छन पै तौ सुमित्रा लै कभतै भौत काम ऐं बस जरा मागणैक नकि आदत छु।    यां बाड़ख्वाड़न में मैल इतु मिहनत कर राखि, वहां जै बेर फिर करौ मिहनत और पत्त नै वां कास पड़ौसी मिलाल।"

नरैण - त्यार इज होशियार छु सब हिसाब किताब कर बेर तैल नै कौ"
रीता - झकौड़ करणै किहुं हैरौ बस आपण मनैक करौ कौन सा हम उनार घर और ऊं हमार घर रुणैयीं।"
नरैण - "सबन है ठुल बात तो रीताल कै दे, जी रै चेली, शाबाश।"
नीता - "बाबू अगर झकौड़ करि बेर के बात बणनी तो फिर बार बार तौ झकौड़ैक जर्वत हुनि पर झकौड़ झकौड़ कं जन्म दिं मेल कं नै।"
नरैण - वाह वाह, म्योर पुर परवार समझदार छु, और के चैं।"

क्रमशः अघिल भाग-१६ ->> 

मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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