
जसुली - भाग २
लेखक: विनोद पन्त 'खन्तोली'
जसुलि जब नौल उज्याण बाट लागि तो हल्क झुणमुणामट द्यो लागण लागि गे। आब पाणि तो चैनेरे भै, बुबोज्यू ( सौरज्यू ) कें सन्दि पुज करणतें ले साजि पाणि चैल। जसुलिक कदम तेज हैग्याय जस जस जसुलि क कदम तेज भाय तस तस बर्ख कि चाल ले तेज हुण भैगे। आब बीच बीच में म्वाट म्वाट जास त्वाप पडण लागि गे। जसुलि झिट् घडि एक बांज कुड क गोठमाव में ठाढि हैगे। बरख कम हुणा क नाम पर और ले तेज हुण लागि गै। आब जसुलिक तात् दूद हात ल्हिणन भीं छाडन जस हैगे अगर नौव जाली तो भिजिबेर निझूत है जालि अगर रुक गे तो घर सासु ज्यूनै बुकूण ऐ जालि।
जसुलिक खुट अघिल बढ गे, आब जि होल देखीनी रौलि। नौव तक पुजी तो द्यो जरा थामी गे, लेकिन जसुलि भिजि गे। नौव कि तरफ बटी जग्गू उण देख तो जसुलिक खुट कामण बैठ ग्याय। जग्गू जसुलिकै गौं क एक बिगडि च्योल भै, जो भौजि कें जरा सीद सादि जसि देखल तो वीक नरूंण कर दिनेर भोय। कदुकै बखत गौं वालनाक हात मार ले खै हालि रनकारैलि पर आब तो उ मार खांणक ले बाणि पड गोय।
जसुलि मन मनै सोचण लागि - ओईज्या तौ जग्गु रनकौर कां बटी देखीण हुन्योल। आब कि करूं, अन्ट सन्ट बकौल आब। आंग में बर्खैलि चिपकी कपडन कें ठीक करते हुए वीलि आपुण आंचव निचोड बेर पल्ल ठीक करणै कि कोशिश करि पर धोति ज्यादे भिजी भै। के फरक नि पड जसुलि शरमानी लजानी जग्गू उज्याणि छ्यौक लगैबेर एक किनारा बाट पाणि भरण लिजी चौड भै।
तब तक जग्गू लि जसुलि कें धात लगै हालि . ओ भौजि पैलाग। जसुलि लि सुणयक नि सुणी कर और दुबार आपुण आँचव ठीक करण लागि। जग्गू गुटका कैं पच्च थुकिबेर कूण लाग - अरे रूण दिओ भौजी, तसिके बाकि जै बान लागणौछा। जसुलिक मन में आय कि क्याच्च गाई ठोक द्यूं, फिर सोच .. कच्यार में ढूंग हाणिबेर के फैद, छिट तो मेरै में पडाल। जग्गू फिर कूण लाग, भौजि .. दाद् नि आय भौत दिन बटी छुट्टी। हाये ... याद तो भौत उनि हुनेलि तुमन .. कब उणीं छ! आब जसुली बिती चुप नि रईण, कूण लागि - जब आल आफि आल, तुम आपुण बाट हिटो, मेर दगाड खिचर्योलि नि करो।
जग्गू तो भै पैदाइशी बेेशरम, आपुण द्वि छिलुका राँख जास आँखन सरुलि उज्याणि तांणि बेर कूण लाग - अरे भौजि, नराज नि हवो यार। मेकें तुमन देखां कांख (दया) लागैं . .. सिबौ, भरी जोबन भोय, दाद छै छै म्हैण तक उनेरे नि भै। कसिके दिन काटन हुन्याला कैबेर कूणयूं .. और भौजी .. कदिनै मेरि लैक क्वे स्यो होलि तो बताया। तुमर आपुणै देवर भयूं मी .. खी खी खु खू ..।
तब तक गौं द्वि और स्यैणी ले पाणि भरण पुजि ग्याय . . जसुलि कें जरा हिकमत जसि ऐ तो वीलि जग्गू कैं मैक्यै द्योय। नंग रनकारा जांछै ने यां बटी .. बरमान फोडि द्यूल, तास फसक आपुण ईज छै करिये। जग्गू सटक गोय, सरुलि पाणि भरिबेर वापस बाट लागि, तो वीक कान में उ द्वि स्यैणिनकि बात पडि .. उ कूण्य! देख धें हमन देखिबेर कदुक मातबर बणनै, तौ छई चलकु बलकु। तैलि के कौ हुन्योल जग्गू छैं, नतर हमन छैं जे के नि कौय वीलि।
जसुलि क आखन में आंस ऐग्याय उनार फसक सुणबेर। मनै मन सोचण लागि - तुमन छैं किलै कौल अलै बलै जग्गू .. तुमार बैग मैंस वीक हात खुट टोडि द्याल, मेर को छ लडनी! बैग परदेश में, सौरज्यू बुड भै, सास छैं तैक घात कओ तो उल्ट कै मेकें जै मैक्यूं ..। ऐल भौ पापा घर हुना तब जी कर सकन यो रनकौर मेर दगाड तास फसक। और तौ द्विये ढ्वाल ले मेकैणी नाम धरनई। दुनियकि खाप भै आफि कर मरनन, मेर तो भगवान जाणौ ..।
बरखा वीलि जरा देर ले हैगे, जसुलि आब सासू कि टुकारनैकि चिन्ता हुण भैगे। उ तेज तेज कदमनैलि घर उज्याणि बाट हिटण लागि।
क्रमश;
विनोद पन्त' खन्तोली ' (हरिद्वार), 09-06-2021
M-9411371839
फोटो सोर्स: गूगल
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