
उत्तराखंड के अति-उपेक्षित मसालों को प्रसार की आवश्यकता
उत्तराखंड के कुछ पारम्परिक अति-उपेक्षित मसालेजिनका प्रचार प्रसार भारत की आर्थिक वृद्धि हेतु आवश्यक है।
आलेख - भीष्म कुकरेती
मसाला अर्थात एक पादप उत्पाद जिसमे तेज या माध्यम सुगंध होती है जो भोजन के स्वाद को परिवर्तित करता है। मसालों का जैसे ही हम नाम सुनते हैं नाक व जीभ की छवि मन में आ जाती है। मसाले भोजन के स्वाद को परिवर्तित कर भोजन के स्वाद को बढ़ा देते हैं। जैसे सामान्य रूप से मांस का कोई स्वाद नहीं होता किन्तु मसाले मांस को विशेष स्वाद दे देते हैं। भिन्न मसालों का स्वाद भिन्न होता है व मात्रा, कब मसाले भोजन में मिलाये जाते हैं व मसाला मिश्रण से स्वाद भिन्न हो जाता है।
यही कारण है कि भोजन का स्वाद घर घर, गाँव गाँव व क्षेत्र अनुसार परिवर्तित हो जाता है। मैंने भारत में कई स्थानों में चिकन सैंडविच खाया हुआ है किन्तु जब मैंने कई यूरोपीय देशों में चिकन सैंडविच खाया तो बेस्वाद या फीका पाया। मक्खन या चीज का स्वाद अधिक पाया। चीन, मकाओ व हॉंगकॉंग के चिकन सैंडविच में चटनी व मसालों से स्वाद ही बदल जाता है।
भारत में मसालों का उपयोग आयुर्वेद के जन्म से ही नहीं शुरू हुआ अपितु सिंधु घाटी काल से ही शुरू हो गया था। आयुर्वेद ने भारतीय भोजनों में लगभग प्रत्येक मसाले को उपयोग की विधि बताई। भारत में मसालों का बाजार सन २०२२ में १६०६७६ करोड़ रूपये का था जो १० प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि के साथ २०२८ सन में २९८ ९०९ करोड़ रूपये का हो जायेगा। अर्थात मसाला उद्यम एक महत्वपूर्ण उद्यम है।
सामन्य रूप से भारत में दो प्रकार के मसाले होते हैं -
कृषि उत्पादित मसाले
वन उत्पादित मसाले
कई वन मसाले भी अब कृषि से उत्पादित हो रहे हैं या वन मसालों का कृषिकरण शुरू हो गया है। भारत औषधि पादप व मसालों को उगने वाले देशों में एकविशिष्ट देश है। संसार में १०९ मसाले की प्रजातियों में से ७९ प्रजाति भारत में पायी जाती हैं। कृषि जनित मसालों के अतिरिक्त भारत में वन मसालों का भी भंडार है।
मसाला उद्यम के भारत में मांग व विदेश में निर्यात बाजार से यह विदित होता है कि भारत में प्रत्येक क्षेत्र के वन मसालों के महत्व समझना पड़ेगा व उन वन मसालों को प्रचार व प्रसारित भी करना पड़ेगा कि वन मसाले अपना योगदान दे सकें। कुछ विशेष वन मसाले निम्न हैं जिन पर समाज शास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों, पत्रकारों व राजनीतिज्ञों को विशेष ध्यान देना होगा कि ये लाभकारी मसाले उचित प्रोत्साहन पाएं कि पूरे भारत में इनकी खपत में वृद्धि हो -
१- जंगली लहसुन -
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Allium tubersum
सामान्य अंग्रेजी नाम - Garlic Chives or Chines Chives
हिंदी नाम -जंगली लहसुन
नेपाली नाम -डुंडू
उत्तराखंडी नाम - दोणो, दूंण, जिमू (हिमाचल)
मसाले हेतु भाग - मूल, पत्ती व फूल
जंगली लहसुन औषधीय गुणों से भी भरपूर है व तिब्बती ससंस्कृति प्रभावित क्षेत्र जैसे उत्तरी हिमाचल, नेपाल उत्तरी पूर्व पिथौरागढ़ में ही जंगली लहसुन का उपयोग मसाले रूप में होता है। जंगली लहसुन का वृहद रूप में कृषिकरण व उत्पादन किया जाना चाहिए।
२- वन अजवाइन -
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Trachyspermum roxburghianum
सामान्य अंग्रेजी नाम - Wild Celery
संस्कृत नाम -अजमोड़ / वन यवनक
हिंदी नाम -अजमोदा /बंगाली राधुनी
नेपाली नाम - वन जवानो
उत्तराखंडी नाम -वण अजवाइन, बण अज्वैण, बण जवांण
जंगली अजवाइन में औषधीय गुण होते हैं व यह गरम तासीर की होती हैं। अतः जंगली अजवाइन का भी कृषिकरण आवश्यक है।
३- रतन जोत -
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Alkanna tinctoria
सामान्य अंग्रेजी नाम - Alkanet, Dyer's Alkanet
हिंदी नाम - रतनजोत, अंजनकेशी,
उत्तराखंडी नाम - रतनजोत
सिद्ध नाम - रथपालै
रतनजोत एक खर पतवार है व पहले रतनजोत की जड़ें कपड़े रंगने में उपयोग होती थी व कुछ क्षेत्रों जैसे कश्मीर में मसालों में भी इसका उपयोग होता है। भोजन में रतनजोत रंग ही नहीं बढ़ाता अपितु स्वाद वृद्धि भी करता है। आँखों की रौशनी, त्वचा रोग, पेट के रोग में वैद्य लोग इसका औषधि रूप में प्रयोग करते थे। रतनजोत को प्रसार -प्रचार की आवश्यकता हैजिससे यह भोजन में रसायन युक्त कृत्रिम रंगों का विकल्प बन सके।
४- बथुआ -
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम -Chenopodium album
हिंदी नाम - बथुआ
उत्तराखंडी स्थानीय नाम - बेथू, बथुआ
संस्कृत नाम - वस्तुका:
नेपाल - बेथे
चीनी नाम - ताक
बथुआ एक गेहूं के पेड़ों के साथ पाये जाने वाला खर-पतवार है। औषधीय गुणों से भरपूर बथुआ के जड़ों, तना, पत्तियो और बीजों को सुखाकर, तब पीसकर सुगंधित मसाला निर्मित होता है। नमक, चटनी में बथुआ मसाला भूख वृद्धि व स्वाद वृद्धि करता है और कई औषधियों में प्रयोग होता है। सब्जी व शराब निर्माण के एक अवयव के अतिरिक्त बथुआ को मसाले रूप में भी प्रचारित किया जाना चाहिए।
५- डम्फू /घुंघरी रसभरी -
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Physalis divaricata
निकटस्त वनस्पति - Physalis indica, Physalis minima
सामान्य अंग्रेजी नाम - Ground Berries
उत्तराखंडी नाम -डम्फू , घुंगरी
नेपाली नाम - गोलभेंडे झाड़
डम्फू अथवा घुंघरी का अधिक उपयोग औषधि रूप में व फल रूप में होता है। भारत में यह फल लगभग सभी शहरों में मिलने लगा है। मसाले के रूप में डम्फू का उपयोग टमाटर जैसे चटनी निर्माण में होता है। ब्रिटिश काल से पहले हिमालयी क्षेत्रों में डम्फू के फलों को सूखा कर सुक्षा बना दिया जाता था व अऋतू समय में सब्जी में डाल देते थे या चटनी बनाई जाती थी। अब सुक्षा बनाने का कार्य बिलकुल बंद हो गया है क्योंकि टमाटर उपलब्ध हैं। वास्तव में डम्फू का व्यापक रूप में कृषिकरण आवश्यक है।
६- वनस्पा फूल -
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Viola serpens, Viola canescens
सामान्य अंग्रेजी नाम - Banfsa , Himalayan white violet
संस्कृत नाम -बनप्सा
हिंदी नाम - बनफ्सा
उत्तराखंडी नाम - बनफ्सा,
हिमाचल -गुगलु फूल, बनफ्सा, बनाक्षा
नेपाली नाम -घट्टेघांस
वनस्पा गरम तासीर का पौधा माना जाता है। कफ, सर्दी, जुकाम, बुखार, मलेरिया बुखार, बदहजमी निर्मूल हेतु काम आता है। वनस्पा के सुखाये फूलों का उपयोग चाय मसाले रूप में होता है व शीतकाल में लाभकारी है। इसके अति दोहन से यह वनस्पति ही खतरे में पड़ गयी है। किन्तु इसके कृषिकरण से लाभ हो सकता है।
७ - सेमल फूल -
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Bombax ceiba
सामान्य अंग्रेजी नाम - Red Silk Cotton, Kapok
संस्कृत नाम - शाल्मली
हिंदी नाम - सेमल
उत्तराखंडी नाम - सेमल, सिमल
हिमालयी क्षेत्रों में प्राचीन समय में सेमल की कलियों की सब्जी ही नहीं फूल के बंद कलियों को सुखाकर सुक्सा बनाया जाता था व समय पर दाल सब्जी में मसाले रूप में स्वाद वृद्धि हेतु डाला जाता था। अब ब्रिटिश काल में संसाधन आने से सेमल का मसाला उपयोग बंद ही सा हो गया है।
८- जंगली या शाही जीरा
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Carum carvi
सामान्य अंग्रेजी नाम - Caraway
हिंदी नाम - शिया जीरा, काला जीरा
संस्कृत नाम -कृष्णजीरिका, कारवी
उत्तराखंडी नाम - शिया जीरा, काल जीरा, शाही जीरा, शिंगु जीरा, काव जिर
काला जीरा उतना तीखा नहीं होता जितना सामान्य जीरा। यद्यपि शाही जीरे की मांग है किन्तु मांग वृद्धि हेतु प्रचार आवश्यक है।
९- भंगजीरा -
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Perilla frutescens
सामान्य अंग्रेजी नाम - Perilla
उत्तराखंडी नाम - भंगजीरा, भंगीरा, भंगिर
नेपाली नाम - सिलाम
भंगजीरा, जीरा, भांग, सरसों के बीजों का छौंका लगाने में उत्तम विकल्प है।
भंगीरा /भंगजीरा का मसाले के रूप में उपयोग
- भंगजीरे / भंगीरे की पत्तियों को मसालों के साथ पीसकर भोजन को विशेष स्वाद दिया जाता है।
- भंगजीरे /भंगीरे की पत्तियों को नमक व मिर्च के साथ पीसकर चटनी बनाई जाती है।
- भंगीरे /भंगजीरे के बीजों को मसाले के रूप में अन्य मसालों के साथ मिलाया जाता है।
- भंगजीरे।/भंगीरे के बीजों को नमक के साथ पीसकर चटनी बनाई जाती है।
- भंगीरे /भंगजीरे के बीजों को पकोड़े बनाते समय पकोड़ों को स्वाद देने हेतु पकोड़े पीठ /पीठु के ऊपर छिड़क देते हैं।
- भंगीरे / भंगजीरे बीजों को भूनकर चबाया भी जाता है जैसे भांग के बीज।
- भुने भंगजीरे / भंगीरे के बीजों को बुखण/चबेना के साथ भी मिलाया जाता है।
- भंगीरे / भंगजीरे के बीजों से तेल निकाला जाता है और खली को मसाले रूप में मवेशियों को दे दिया जाता है।
- भंगजीरे को प्रसार व प्रचार से भारत का मुख्य मसाला बनाया जाना चाहिए जिससे इसका निर्यात भी हो सके।
१०- जम्बू या फरण -
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Allium humile
सामान्य अंग्रेजी नाम - Small Alpine Onion
हिंदी नाम - हिमालयी वन प्याज
उत्तराखंडी नाम - जम्बू, फरण
जम्बू या फरण हिमालयी व तिब्बत व चीन क्षेत्र का एक मुख्य छौंकने वाला मसाला है। जम्बू की सुगंध इतनी विशेष है कि गाँवों में यदि किसी ने जम्बू का छौंका लगाया हो तो अधिसंख्य मनुष्यों को पता चल जाता है। पत्तियों में वही सुगंध होती है जो लहसुन की पत्तियों में होती है। सूखे फूलों से छौंका लगाया जाता है जो स्वाद वर्धक होता है। जम्बू का उपयोग आयुर्वेद में भी होता है।
११- औषधि गुणों से भरपूर टिमुर -
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Xanthoxylum armatum
सामान्य अंग्रेजी नाम - Prickly Ash, Sichuan pepper or Toothache Tree
संस्कृत नाम -आयुर्वेद नाम -तेजोह्वा , तुम्बुरु:
हिंदी नाम -टिमुर, तेजबल
नेपाली नाम - टिमुर
उत्तराखंडी नाम -टिमुर, तिमूर, टिमरू
टिमुर की कंटीली झाड़ियां हिमालय में 1000 मीटर से लेकर 2250 मीटर तक की ऊंचाइयों पर मिलती हैं।
टिमुर एक सबसे अधिक दुर्भाग्यशाली औषधि व मसाला है जिसके सबसे अधिक उपेक्षा हुयी। ब्रिटिश काल से पहले टिमुर का उपयोग भोजन को तीखा करने हेतु होता था। मिर्च का भारत में प्रवेश पश्चात टिमुर नेपथ्य में चला गया है। टिमुर की कई औषधीय लाभ भी हैं जैसे दांतुन। सम्राट अशोक दांतुन हेतु हिमालय से टिमुर आयात करते थे। हिमालयी क्षेत्रों विशेषकर तिब्बती प्रभाव वाले क्षेत्रों में सूखे टिमुर के बीजों, छाल व चूरे का उपयोग डुंगचा चटनी व स्वाद वर्धन हेतु कई सूप या तरीदार तरकारी व सलाद में करते हैं। मसालों को टिमुर pepper या सिजवान पीपर के रूप में भारत में होता है। टिमुर मसाले को उचित प्रोत्साहन की अति आवश्यकता है।
१२- चमत्कारी मसाला जख्या-
वानस्पतिक शास्त्रीय नाम - Cleome viscosa
सामान्य अंग्रेजी नाम - Asian Spider Flower , Wild mustard
संस्कृत नाम -अजगन्धा
हिंदी नाम - बगड़ा
नेपाली नाम -हुर्रे, हुर्रे, बन तोरी
उत्तराखंडी नाम -जख्या, जखिया
एक मीटर ऊँचा, पीले फूल व लम्बी फली वाला जख्या बंजर खेतों में बरसात उगता है। जख्या का औषधि उपयोग (अल्सर आदि) गुप्त काल से भी पहले से होता आ रहा है।
जख्या का मसाले के रूप में उपयोग
उत्तराखंड का कोई ऐसा घर न होगा जो जख्या का छौंका न लगाता हो। जख्या केवल छौंके के लिए ही प्रयोग होता है। उत्तराखंड के प्रवासी भी उत्तराखंड से अपने साथ जख्या ले जाते हैं।
जख्या सरसों व ज़ीरे का विकल्प और इन सबसे लाभकारी भी है। जख्या भारत में 5 underrated अर्थात अति उपेक्षित मसालों में गिना जाता है।
भारत की श्री वृद्धि निर्यात से ही होगी। प्रत्येक वस्तु का निर्यात या स्वदेशीय उपभोग का महत्व है। मसाला उद्यम की वृद्धि हेतु उपरोक्त मसालों का उपभोग व प्रचार -प्रसार आवश्यक है।
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श्री भीष्म कुकरेती जी के फेसबुक वॉल से साभार
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